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Description
ब से बैंक
हिन्दी के सुपरिचित कथाकार-व्यंग्यकार सुरेश कांत का यह व्यंग्य-उपन्यास एक बैंक की अंदरूनी कहानी कहता है, जिसके माध्यम से बैंक-कर्मचारियों के दैनंदिन क्रियाकलापों का जायजा लिया गया है। इसमें एक तरफ बैंक-मैनेजर के अंधविश्वासों पर चुटीली टिप्पणी है तो दूसरी ओर कर्मचारियों की कामचोरी के साथ ही उनकी समस्या और उनके सुख-दुख को भी लेखक ने अनदेखा नहीं किया है और बैंक का सारा कारोबार जिन ग्राहकों के बिना अधूरा है, उनकी परेशानियाँ और शिकायतें भी यहाँ मौजूद हैं। लेकिन सब कुछ इतना पूर्वग्रहमुक्त और सहज-स्फूर्त है कि व्यंग्य में कहीं कटुता नहीं आती, वह मीठी मार से अपना काम करता चलता है।
सुरेश कांत बैंक में कार्यरत हैं, इसलिए स्वभावतः जिन घटनाओं और प्रसंगों का चित्रण उन्होंने यहाँ किया है, वे प्रामाणिक और विश्वसनीय तो हैं ही, लेखक की मानवीय दृष्टि का स्पर्श पाकर प्रभावोत्पादक भी हो गए हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2003 |
Pulisher |
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