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Description
बादलों में बारूद
हिंदी में यात्रा-वृत्तांत लिखने की उल्लेखनीय परंपरा रही है। कथाकार मधु कांकरिया ने ‘बादलों में बारूद’ के द्वारा इस परंपरा को एक सार्थक समकालीनता प्रदान की है। यह कहना मुनासिब होगा कि अपने को खोजते हुए लेखिका ने भूगोल, इतिहास, संस्कृति, पुरातत्त्व, आदिजीवन, पुरातन प्रकृति, अलक्षित लोकमन और अदम्य अस्तित्व के कई कोने-अंतरे झांक लिए हैं। मधु कांकरिया ने परिवर्तन की पदचाप भी सुनी है। उन्होंने ‘अभावों के लोकतंत्र’ को भी देखा है और इस प्रक्रिया में जो वृत्तांत रचा है वह इस पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर जीवंत है।
लोहरदगा और गुमला के आदिवासी अंचल, धरधरी की चढ़ाई और पलामू, यूमथांग और हिमालय-प्रांतर, नेपाल, शिलांग, सुंदरवन और सजनारवाली टापू, चेन्नई, लद्दाख और पैनगोंग, कालडी–इन जगहों पर घूमते हुए मधु कांकरिया ने अनुभवों का एक ख़ज़ाना एकत्रा किया है। अपने अनुभवों को पारदर्शी बनाकर बेहद रचनात्मक भाषा में उन्होंने पाठकों तक पहुंचाया है। इस यायावरी में कहीं कोई पूर्वाग्रह नहीं है। यथार्थ को उसके अधिकाधिक आयामों में देखने, परखने व सहेजने की ईमानदार कोशिश है।
लेखिका ने रूप और विरूप दोनों को देखा है; शब्दांकित किया है। यात्रा करते हुए ज़रूरी विमर्शों पर ठहरकर उन्होंने ‘सभ्यताओं’ के सच पर भी रोशनी डाली है। असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश जैसी जगहों पर कई तरह की नाइंसाफियां देखकर वे लिखती हैं, ‘सभ्यता की इन महायात्राओं की नींव में हमारी उदासियां भरी हुई हैं। हर सभ्यता वहां के मूल निवासियों…वहां के आदिवासियों को कुरूप बनाकर ही इतना आगे बढ़ी है। आज हम जाग रहे हैं और चाहते हैं ऐसी व्यवस्था कि इतिहास के वे काले पृष्ठ फिर दोबारा न खुलें।’ इस पुस्तक की ऐसी अनेक विशेषताएं इसे अन्य यात्रा-वृत्तांतों में विशेष बनाती हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2014 |
Pulisher |
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