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Description
बादशाही अँगूठी
औरंगज़ेब तब बादशाह नहीं था, शहज़ादा ही था; जब उसे समरकंद की एक लड़ाई में भेजा गया। लड़ते हुए जब उसकी जान पर बन आयी तो उसके सिपहसालार ने उसकी रक्षा की। इससे खुश होकर औरंगजेब ने उसे अपनी एक अँगूठी बख्श दी। सैकड़ों बरस बाद वही अँगूठी आगरा में उस सिपहसालार के खानदान वालों से प्यारेलाल नामक रईस ने खरीदी; और फिर वह उसे डॉक्टर को भेंट कर गया।
स्वाभाविक है कि ऐसी बेशकीमती अँगूठी को हड़पने के लिए चोर-डाकू भी पीछे लगे। लेकिन उससे पहले ही वह कुछ इस प्रकार गायब हुई, मानो जादू हो गया हो !
और इसके बाद शुरू होती है उसे, बल्कि कहना चाहिए, उसे चुराने वाले व्यक्ति की खोजने की रहस्यपूर्ण यात्रा। एक प्रकार से देखा जाय तो यह जासूसी उपन्यास है, लेकिन सत्यजीत राय सरीखे लेखक और फिल्मकार की रचना-दृष्टि से इतने से ही संतोष नहीं कर सकती। यही कारण है कि बादशाही अँगूठी गायब होने और उसे गायब करने वाले को खोजते हुए वे लखनऊ, हरिद्वार और ऋषिकेश की ऐतिहासिक यात्रा भी कराते हैं। कहना होगा कि यह किशोर पाठकों को ध्यान में रखकर लिखा गया यह उपन्यास दिलचस्प भी है और ज्ञानवर्धक भी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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