Bagoogoshe
Bagoogoshe
₹395.00 ₹315.00
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Author: Swadesh Deepak
Pages: 208
Year: 2024
Binding: Paperback
ISBN: 9789357758871
Language: Hindi
Publisher: Vani Prakashan
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Description
बगूगोशे
बगूगोशे की खुर्दरी ज़मीन में दीपक ने जिन भौगोलिक, ऐतिहासिक, स्थानीय और सामाजिक घटित को उकेरा और उघाड़ा वह विस्मयकारी है। स्वदेश दीपक के इन बगूगोशों की फाँकों का रसीलापन पाठकों के दिल-दिमाग़ में देर तक ताज़ा रहेगा।’
-कृष्णा सोबती
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इन कहानियों में यादें हैं और विस्मृतियाँ भी, विश्वास कर लेने का साहस है तो अविश्वास का सलीका भी, मिठास है तो कसैलापन भी है। ऊपर से शान्त और एकसार दिखने वाली सतह को स्वदेश दीपक इस तरह उधेड़ते हैं कि भीतर का सारा विद्रूप, सारी दरारें और बदसूरती साफ़ दिखने लगती है।
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मैंने माँ से पूछा, “कुछ खाने को दूँ ?”
“हाँ काका, बाज़ार से बगूगोशे ले आ । बड़ा दिल कर रहा है।” मैं बिल्कुल हैरान। यह शब्द पहली बार जो सुना है।
“बगूगोशे क्या ? सीधा नासपाती कहो।”
“नाखाँ गोल होती हैं। बगूगोशे पूँछ की तरफ से लम्बे और रस ही रस। पिण्डी में जब हकीम जी गुस्सा करते थे तो शाम को थैला भर बगूगोशे ले आते थे। अब औरत के अपने नखरे। न की तो समझाया था ‘खा ले बीबी। शायद तेरी जीभ में मिठास आ जाये। है तो तू हथियारों का कारख़ाना।”
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“मैंने तो कभी देखे नहीं।”
“तो पूछ लेना।”
“मुझे शर्म आयेगी।”
“कुछ पता न हो तो पूछने में शर्म कैसी ! मुझे छोटा रेडियो लगा दे। सवेरे से ख़बरें नहीं सुनीं।”
उससे ट्रांजिस्टर शब्द आज तक नहीं बोला गया।
मैं फलों की दुकान पर गया ही नहीं। फलवाले ने पूछ लिया कि बगूगोशे क्या होते हैं तो ? क्या ले जाऊँ माँ के लिए ? छोले-कुल्चे ख़रीदे। पहले की तरह इस बार भी सोचा ज़रूर कि माँ हमारे पास रहती क्यों नहीं ! आयेगी बाद में और जाने की तैयारी पहले।
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher |
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