Balkrishna Bhatt ke Shreshtha Nibandh
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बालकृष्ण भट्ट के श्रेष्ठ निबन्ध
भट्टजी की प्रमुख चिंता भारतेंदु की ‘स्वत्व निज भारत लाह’ या दशवत्लता ही नहीं बल्कि मुल्क की तरक्की और देशत्वाभिमान भी था। उनकी चिंता थी कि देश की अस्मिता की रक्षा कैसे की जाय। देशत्व रक्षा का उपाय क्या है। एक ओर वे नई तालीम के पक्षधर थे क्योकि यह अन्धधार्मिकता, काहिली और भेद-भाव को दूर करती थी, दूसरी ओर इसके चरित्र के विरोधी थे, क्योकि यह गुलामी को औचित्यपरक बनाती थी। वे आर्यों के बाहर से आने के सिद्धान्तको स्वदेशभिमान को समाप्त करनेकी युक्ति मानते थे। इस पैनी दृष्टि के अनेक प्रमाण इस पुस्तक में है। भट्टजी के लेखों में नृतत्व शास्त्र के उदहारण मिलते है।
हिंदी साहित्य के इतिहास के अति प्रचारित नवजागरण के प्रवर्तकों से बहुत पहले निर्भय होकर वैचारिक उर्जा उत्पन्न करने और देश की तरक्की में उस उर्जा के उपयोग का सजग प्रयत्न भट्टजी ने किया है। उन्होंने सांस्कृतिक जागरण और लोकजागरण को राजनैतिक सजगता से कभी अलग नहीं किया, बल्कि इन्हें एक चक्रीय ही माना। इस व्यापक विचारवृत के अंतर्गत ही उनके साहित्यिक प्रतिमान विकसित हुए जैसे साहित्य जन समूह के ह्रदय का विकास है। सच तो यह है कि सैद्धांतिक और व्यवहारिक आलोचना के लेखों को संकलित किया जाय तो स्वतंत्र पुस्तक बन जायेगी। इसमें ऐसे अनेक लेख संकलित हैं।
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2011 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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