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Description
बाणभट्ट की आत्मकथा
अपनी समस्त औपन्यासिक संरचना और भंगिमा में कथा-कृति होते हुए भी महाकाव्य की गरिमा से पूर्ण है। इसमें द्विवेदी जी ने प्राचीन कवि बाण के बिखरे जीवन-सूत्रों को बड़ी कलात्मकता से गूंथकर एक ऐसी कथा-भूमि निर्मित की है जो जीवन सत्यों से रसमय साक्षात्कार कराती है। इसमें वह वाणी मुखरित है जो सामगान के समान पवित्र और अर्थपूर्ण है: ‘सत्य के लिए किसी न डरना, गुरू से भी नहीं, मंत्र से भी नहीं, लोक से भी नहीं, वेद से भी नहीं।’
बाणभट्ट की आत्मकथा का कथानायक कोरा भावुक कवि नहीं वरन् कर्मनिरत और संघर्षशील जीवन-योद्धा है। उसके लिए ‘शरीर केवल भार नहीं, मिट्टी का एक ढेला नहीं, बल्कि ‘उससे बड़ा’ है और उसके मन में आर्यावर्त के उद्धार का निमित्त बनने की तीव्र बेचैनी है। ‘अपने को निशेष भाव से दे देने’ में जीवन की सार्थकता देखनेवाली निउनिया और ‘सबकुछ भूल जाने की साधना’ में लीन महादेवी भट्टिनी के प्रति उसका प्रेम जब उच्चता का वरण कर लेता है तो यही गूँज अंत में रह जाती है-‘‘वैराग्य क्या इतनी बड़ी चीज है कि प्रेम के देवता को उसकी नयनाग्नि में भस्म कराके ही कवि गौरव का अनुभव करे।
ततः समुत्क्षिप्य धरां स्वदंष्ट्रया
महावराहः स्फुट—पद्मलोचनः।
रसातलादुत्पल – पत्र- सन्निभः
समुत्थितो नील इवाचलो महान्।।
जलौघमग्ना सचराचरा धरा
विषाणकोट्याऽशिलविश्वमूर्त्तिना।
समुद्धृता येन वराहरूपिणा
स मे स्वयंभूर्भगवान् प्रसीदतु।।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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