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Description
बारामासी
ज्ञान चतुर्वेदी का उपन्यास ‘बारामासी’ भाषा और शैली की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है जिसमें अद्भुत वाक्य-विन्यास और शब्दों के बहुआयामी अर्थबोधकता की ऐसी लयकारी है जिसकी दूसरी मिसाल मिल पाना मुश्किल है। यह उपन्यास बुंदेलखंड के एक छोटे-से कस्बे के एक छोटे-से आँगन में पल रहे छोटे-छोटे कस्बे के छोटे-छोटे स्वप्नों की कथा है – वे स्वप्न ऐसे हैं जो टूटने के लिए देखे जाते हैं…और टूटने के बावजूद देखे जाते हैं। स्वप्न देखने की अजीब उत्कंठा तथा उन्हें साकार करने के प्रति धुँधली सोच और फिर-फिर उन्हीं स्वप्नों को देखते जाने का हठ…कथा न केवल इनके आस-पास घूमती है बल्कि मानवीय सम्बन्धों, पारस्परिक शादी-ब्याह की रस्मों, सड़क छाप क़स्बाई प्यार, भारतीय क़स्बों की शिक्षा-पद्धति, बेरोज़गारी, माँ-बच्चों के बीच के स्नेहिल पल तथा भारतीय मध्यवर्गीय परिवार के जीवन-व्यापार को उसके सम्पूर्ण कलेवर में उसकी समस्त विडम्बनाओं-विसंगतियों के साथ न केवल पकड़ती है बल्कि बुंदेलखंडी परिवेश के श्वास-श्वास में स्पन्दित होते हुए सहज हास्य-व्यंग्य को भी समेटती है।
इस उपन्यास में बुंदेलखंड की माटी से बने गुच्चन, छुट्टन, छदामी, फिरंगी, लल्ला और चन्द्र जैसे पात्र और भारतीय नारी के अदम्य संघर्ष और भारतीय माँ का अतुलनीय स्नेह की प्रतिध्वनि अम्माँ जैसा चरित्र और सब कुछ सह जाने को तत्पर बिन्नू जैसी बहन, पाठकों को एक अनोखे संसार में ले जाने में सक्षम हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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