Beete Kitane Baras

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Beete Kitane Baras

Beete Kitane Baras

195.00 155.00

In stock

195.00 155.00

Author: Prayag Shukla

Availability: 5 in stock

Pages: 86

Year: 2024

Binding: Paperback

ISBN: 9789357753289

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

बीते कितने बरस

प्रयाग शुक्ल हिन्दी के एक ऐसे कवि हैं जिनकी कविताएँ प्रकृति से मनुष्यों और मनुष्यों से प्रकृति तक की यात्रा अपने नैरन्तर्य में बिना किसी निग्रह के जिस तरह करती हैं, वह उनके सृजनलोक को अपनी दृष्टि, संवेदना और भाषा-शैली में विपुल तो बनाता ही है, विशिष्ट भी बनाता है और इसका उदाहरण है उनका यह कविता-संग्रह बीते कितने बरस।

प्रयाग जी की विषय-वस्तु गढ़ी हुई नहीं, जी हुई होती है, इसलिए उनकी चिन्ताएँ गहन रात में भी जाग रही होती हैं और अपनी सोच में विचरती रहती हैं जिन्हें ‘होटल के कमरे में रात को’ कविता में स्पष्ट देखा जा सकता है, जहाँ बाहर की आवाजें अन्दर तक आ रहीं – कौन है जो भगाये ले जा रहा है मोटर साइकिल रात को सड़कों पर सोया है शहर जब… क्या है भगोड़ा वह …घर पर कोई बीमार है …कौन है/… नींद फुटपाथों की तोड़ता/कुत्तों को भँकता/छोड़ता ! फिर वह सिहर भी जाते हैं-चीरता हुआ रात को कौन है ? हत्यारा ? वे जब ‘उन्माद के ख़िलाफ़ एक कविता’ लिखते हैं तब उन्माद की गहरी पड़ताल करते प्रकृति के ज़रिये इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि बीजों, पेड़ों, पत्तों में नहीं होता उन्माद। वह आँधी में होता है जो ज़्यादा देर तक तो नहीं ठहरती लेकिन बहुत कुछ ध्वंस करके चली जाती है। इसलिए हम जब उन्माद में होते हैं, देख नहीं पाते फूलों के रंग क्योंकि फूलों के रंग देखने के लिए मनुष्य होना ज़रूरी होता है। यह कविता ऊपरी तौर पर राजनीतिक न होते हुए भी साम्प्रदायिकता के बारे में कुछ कह जाती है; और ‘वहाँ’ कविता में जो दंगे का धुआँ है, उसे भी दूर से ही सही, गहरे समझा जा सकता है। उन्माद के इस परिदृश्य में उनकी ‘युद्ध’ कविता को भी पढ़ा जा सकता है, जो अपनी कहन में इतनी मार्मिक है कि अन्दर तक हिला देती है-अरे, वहाँ कोई घर/भहराया/वह भी किसी आदमी का था/उसमें भी रहते थे बच्चे।

दुःख पर तो कइयों ने कविताएँ लिखी हैं लेकिन प्रयाग जी अपनी बानी से जो बिम्ब रचते हैं, वह दूर तक कहीं दिखाई नहीं देते। ‘एक दृश्य’ की ये पंक्तियाँ- एक घड़े के आधे टूटे हुए मुँह के भीतर/भरा है दुःख हों या ‘स्त्रियाँ लाती थीं मीलों दूर से भरकर घड़े’ की ये पंक्तियाँ – आँधी चलती थी/बूँदें गिरती थीं/रोती थीं कविता/की दुनिया में रात को नदियाँ वेदना के एक अनछुए छोर तक लिये चली जाती हैं। इसलिए वे जब सम्बन्ध-सूत्र रचते हैं, दुःख या त्रासदी को बाँचते भरोसे को रचते हैं जो कहीं से भी सायास नहीं लगता।

प्रयाग जी महानगरीय जीवन में नित्य कुछ घटते-छूटते को भी जिस बेचैन स्वर में अभिव्यक्ति देते हैं, उसे उनकी ‘महानगर में कुछ इच्छाएँ’, ‘महानगर में प्रकृति कविता’, ‘छतें’, ‘नौकरी’ आदि रचनाओं में गहरे आत्मसात् किया जा सकता है। ऐसे में वे स्मृतियों में जाना, वहाँ से कुछ साँसें बटोर लाना ज़रूरी समझते हैं, और इसकी बानगी उनकी ‘ग्रुप फ़ोटो’, ‘गली में’, ‘धूप में भाई’, ‘हमारा घर’ आदि कविताओं में परिलक्षित होती है। वे जब प्रकृति को जीवन और जीवन को प्रकृति के क़रीब देखते हैं, अन्तःसम्बन्ध को काव्यराग में बदल देना चाहते हैं, और इसे उन्होंने ‘शाम को लाली’, ‘खिड़की से पेड़’, ‘वर्षा-चित्र’, ‘घनी रात’, ‘शाम को गाँव में’, ‘सूरजमुखी’, ‘चिड़ियों के झुण्ड’, ‘सुबह के कबूतर’ जैसी रचनाओं में बखूबी सृजित भी किया है। इसी श्रेणी में अपने सौन्दर्य में एक अद्भुत और अविस्मरणीय कविता है ‘पंछियों के पैर’।

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि नयी साज-सज्जा में कुछ नयी रचनाओं के साथ संगृहील बीते कितने बरस से गुज़रने के बाद कविताएँ हमसे छूट नहीं जातीं, हमारे अन्तस्तल में कहीं रच-बस जाती हैं, ताकि हम उस अनुभव से अवगत हो सकें जो कवि का निजी होते हुए भी निजी प्रतीत नहीं होता। और यह एक ऐसा हेतु जो उन्हें अपने पुरखे कवियों की परम्परा से जुड़े होकर भी अलग से कला-आभा देता है।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2024

Pulisher

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