Bhairava Padmavati Kalpa
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Description
श्री मल्लषेण सूरि विचरित भैरवापद्मावतीकल्प
जैन शास्त्रों में मन्त्र-शास्त्र द्वादशांग वाणी जितने ही प्राचीन हैं। द्वादशांग वाणी के बारह अंग चौदह पूर्वों में से विद्यानुवादपूर्व मन्त्र, तन्त्र एवं यन्त्रों का विशालतम संग्रह है। जैन मन्त्रशास्त्र की परम्परा में अनेक कल्पग्रन्थ मिलते हैं :
१. भैरवषग्मावतीकल्प
२. ज्वालामालिनीकल्प
३. अम्बिकाकल्प
४. चक्रेश्वरीकल्प
५. सरस्वतीकल्प आदि।
इनमें भैरवपद्मावतीकल्प का स्थान सर्वोपरि है।
श्री मल्लिषेण मुनि द्वारा विरचित भैरवपद्मावती – कल्प में कुल ४०० श्लोक एवं १० अधिकार हैं। इन अधिकारों में –
१. मन्त्रिलक्षण
२. सकलीकरणक्रिया
३. देवीपद्मावती की अर्चना-विधि
४. द्वादशरंजिकायन्त्र
५. स्तम्भनयन्त्र
६. स्त्री-आकर्षण
७. वशीकरणयमन्त्र
८. निमित्ताधिकार
९. वशीकरणतन्त्र
१०. गारुड़ विद्या का साङ्गोपाङ्ग वर्णन एवं विवेचन किया गया है।
भैरवपद्मावतीकल्प जैन मन्त्रशास्त्र का मानक एवं सर्वाङ्गपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ पर श्री बन्धुषेण का संस्कृत विवरण विद्वत्समाज में समादरणीय रहा है।
प्रकृत संस्करण में श्री बन्धुषेण के संस्कृत विवरण के साथ-साथ ‘मोहिनी’ हिन्दी व्याख्या के माध्यम से मन्त्र एवं उसकी साधना की जटिलताओं को सरल एवं स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। साथ ही परिशिष्टों में पद्मावती देवी की उपासना में उपयोगी विविध सामग्री देकर इसे अधिक उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है। इस प्रकार भैरवपद्मावतीकल्प का यह संस्करण जैन मन्त्रशास्त्र के विद्वान् एवं जिज्ञासु साधक दोनों ही के लिए समान रूप से संगहणीय है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
Language | Sanskrit & Hindi |
ISBN | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher | |
Pages |
Reviews
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