Bharat Ki Sanskriti Ki Kahani

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Bharat Ki Sanskriti Ki Kahani

Bharat Ki Sanskriti Ki Kahani

90.00 76.00

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Author: Bhagwatsharan Upadhyay

Availability: 5 in stock

Pages: 80

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9788170285946

Language: Hindi

Publisher: Rajpal and Sons

Description

भारतीय संस्कृति की कहानी

सदा से आदमी ऐसा नहीं रहा है जैसा आज है। कोई युग ऐसा न था जिसमें पेड़ों में रोटियाँ फलती हों और आदमी तोड़कर खा लेता हो। बल्कि एक दिन था, जब उन सारी चीज़ो का, जो हमारे चारों ओर दीखती हैं, अभाव था। हर चीज़ ज़रूरत से, समय-समय पर आदमी ने बनाई है। ज़रूरत, सूझ और मेहनत से धीरे-धीरे आज की दुनिया बनी। धीरे ही धीरे इन्सान अपने जंगली जानवर के से जीवन से दूर आज की दुनिया की ओर हटता आया है। उसकी खोज और ईजाद करने वाली अक्ल ने उसकी मानवीय दुनिया बनाई और बसाई है। यही सभ्यता है।–जंगली जीवन से मानवीय जीवन की ओर बढ़ता सामाजिक जीवन का विस्तार।

संस्कृति का सम्बन्ध उसी सामाजिक जीवन से अधिक से अधिक है। जब आदमियों का एक दल या समाज एक ही रीति से कुछ करता है, एक ही विश्वास रखता है, एक ही प्रकार के आदर्श सामने रखता है, अपने पुरखों के कामों को समान रूप से अपने आदर, गर्व और गौरव की मानता है, संस्कृति का जन्म होता है।

संस्कृति आदमी के सामाजिक जीवन का प्राण है। जंगली जीवन से सामान्य जीवन की ओर बढ़ना, एक-दूसरे के साथ प्रशंसापूर्ण व्यवहार करना, सभ्यता है। धनुष बाणों का व्यवहार, खेती का आरम्भ गोल पहिए की खोज, गाँव में मनुष्य का एक साथ मिलकर बसना, सभ्यता के आरम्भिक चरण हैं। संस्कृत विचार की दुनिया है। पूजा, धर्म, दर्शन, राष्ट्र, सामाजिक संगठन उसकी मंज़िलें हैं।

आदमी एक-दूसरे से मिलकर सीखता है और सिखाता है। इस तरह एक स्थान पर रहने वाले दूसरे स्थान के रहने वालों को सिखाते और उनसे सीखते हैं। इस प्रकार सभी सबसे सीखते और सबको सिखाते हैं। समाज में रहना ही सीखना और सिखाना है। जिस देश में रहने वालों को दूसरे देश वालों से जितना ही मिलने का मौका पड़ता है, उतनी ही तेज़ी से वे उनसे सीखते हैं, उन्हें सिखाते हैं।

इस विचार से हमारा देश बड़ा भाग्यवान रहा है, क्योंकि यहां बसने या आहार की खोज में लोग बराबर बाहर से आते रहे हैं। यहां वालों में घुल-मिल गए हैं, यहां वालों को सिखाते रहे हैं, यहां वालों में घुल-मिलकर उनसे सीखकर उनके हो गए हैं। अपने विचारों-विश्वासों को साथ लेकर आए हैं। अपने विचार यहाँ वालों को दिए है। यहाँ के विचारों को अपना लिया हैं। दोनों के मिलने से तीसरे किस्म के सभ्य विचार बने हैं। एक नई संस्कृति पैदा हुई है।

किसी चीज़ पर जब दूसरी चीज़ का धक्का लगता है तब उसमें गति होती है। वह चल पड़ती है। जब एक देश की सीमा पर दूसरे देश के लोग आ खड़े होते हैं। एक-दूसरे को घूरते हैं। फिर लड़ पड़ते हैं। जो हारते हैं साथ रहने लगते हैं, घुल-मिल जाते हैं। पहले उनके रहने-सहने के तरीके धर्म-विचार अलग-अलग थे, भिन्न-भिन्न। अब वे भिन्न-भिन्न नहीं रहे, एक हो गए। आपस में नज़दीक, अपने परायों से मिलते-जुलते पर दूर।

संस्कृति ने एक नया कदम लिया, नई मंज़िल पा ली।

भारत में अनेक जातियां बाहर से आईं, यहां वालों से लड़ी, तोड़ा-फोड़ा बरबाद किया फिर मिलकर एक हो गईं। यही मिली-जुली संस्कृति हमारी बपौती हुई, हमारे गर्व और गौरव की बात। जब-जब नई जातियों से हमारा वैर या प्रेम का सम्बन्ध हुआ, तब-तब हममें नई चेतना आई, नया जीवन आया, हमें नई शक्ति मिली। हमारी संस्कृति की कहानी नई जातियों के हमसे मिलने से बनी इसी नई चेतना, नये जीवन, नई शक्ति की कहानी है।

 

 

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

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