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भारत में कुंभ
भारत में कुंभ को लोक मंगल का पर्याय माना जाता है। यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें लोभ, मोह, अहंकार, क्रोध आदि का त्याग कर करोड़ों लोग शामिल होते हैं और धर्म, संस्कृति, संस्कार, परंपरा, लोकाचार, व्यापार, मनोरंजन की अनगिनत आकांक्षाओं की पूर्ति करते हैं। कुंभ नगरी पग-पग पर श्रद्धालुओं को सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे के प्रति सद्भावना बनाए रखने का संदेश देती है और इसके अंतर्गत भारतीय सभ्यता व संस्कृति की इतनी चमक-दमक देखने को मिलती है कि पूरी दुनिया देखती रह जाती है। इस पर्व की महत्ता इहलोक से परलोक तक है। वेद-पुराणों में कुंभ के दर्शन होते हैं तथा प्राचीन काल, मध्यकाल, ब्रिटिश काल एवं स्वतंत्र भारत में भी कुंम की विशद लोकप्रियता देखते ही बनती है। इस पुस्तक में भारतीय संस्कृति व परंपरा में कुंभ के विभिन्न आयामों पर विचार किया गया है। कुंभ से जुड़ी कथाएँ, इतिहास, अखाड़ों का रोमांच, नागा साधुओं की भूमिका, कल्पवास आदि के साथ-साथ व्यावसायिक दृष्टिकोण से कुंभ किस प्रकार महत्वपूर्ण है, पुस्तक में इन सब पर विचार प्रस्तुत धनंजय चोपड़ा 15 पुस्तकों के लेखक हैं। पत्रकारिता व लेखन के क्षेत्र में उन्हें लगभग तीन दशकों का अनुभव है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके दो हजार से अधिक आलेख और स्तंभ प्रकाशित हैं। उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार का भारतेंदु हरिश्चंद्र पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का बाबूराव विष्णु पराडकर तथा धर्मवीर भारती पुरस्कार के साथ-साथ कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्तमान में वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज में पाठ्यक्रम समन्वयक के रूप में कार्यरत हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Publishing Year | 2023 |
Pages | |
Pulisher |
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