Bhartiya Bhashaon Mein Ramkatha : Aaranyak Bhasha

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Bhartiya Bhashaon Mein Ramkatha : Aaranyak Bhasha

Bhartiya Bhashaon Mein Ramkatha : Aaranyak Bhasha

495.00 410.00

In stock

495.00 410.00

Author: Yogendra Pratap Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 226

Year: 2016

Binding: Hardbound

ISBN: 9789352295685

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

भारतीय भाषाओं में रामकथा – आरण्यक

जनजातीय साहित्य जनजातियों का पुराणेतिहास, वेदशास्त्र, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र और आचरणशास्त्र भी है। आचरण का मतलब यह है कि वे तदनुसार जीवन जीने का प्रयास करते हैं। इनकी भी लोकगाथाएँ हैं, लोकनाट्य हैं, लोककथाएँ, लोकसुभाषित, लोकगीत और लोकरूढ़ियाँ, लोकविश्वास और लौकिक परिसंवाद और रूढ़ियाँ भी हैं। जनजातियों में आल्हा, लोरिकी, विजयमल की तरह लम्बी लोकगाथाएँ बहुत कम मिलती हैं।

बूढ़ी दादियों के कण्ठ में जो थीं, वे अब लुप्तप्राय हैं, सम्भव है, तराई की जनजातियों में कुछ बची-खुची हों, यदि ऐसा है तो उनका संग्रह कर लेने की आवश्यकता है। इनकी लोककथाओं में यत्र-तत्र-सर्वत्र राम रमे हैं, जिसका उल्लेख प्रसंगत: इस अंक में किया गया है। हाँ, लोकगीतों में राम का बहुशः उल्लेख हुआ है। प्रायः हर जनजाति के लोकगीतों में राम, रामायण के पात्र रचे-बसे हैं। यह बात और है कि उनके बीच राम या रामकथा के पात्र जब होते हैं तो वे आभिजात्य रामायणों के पात्रों से भिन्न होते हैं। वे वहाँ उन्हीं की जाति, वर्ग, समाज के अगुआ, उनके परिवार के सदस्य बनकर उनमें घुल-मिल जाते हैं। उनका ईश्वरत्व, अलौकिक रूप बदल कर तदनुरूप हो जाता है। यही तो है राम का रमत्व। मानस’ में निषादराज और शबरी की उपकथाओं द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि भगवान का भक्त चाहे जिस जाति का हो, अभिनन्दनीय है और उसके साथ खान-पान पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। शबरी और निषादराज के कथाप्रसंग तो मात्र उदाहरण हैं, ऐसे न जाने कितने प्रसंग श्रीराम और वनवासियों और आदिवासियों से जुड़े होंगे या हैं जिनको वनवासी जातियों के बीच जाकर खोज निकालने की आवश्यकता है।

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2016

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