Bhartiya Samantwad
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भारतीय सामंतवाद
भारतीय इतिहास में सामंती ढाँचे के स्वरुप को लेकर इतिहासकारों के बीच आज भी मतभेद बरक़रार हैं, अब भी पत्र-पत्रिकाओं में इस विषय पर बहस चलती रहती है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. रामशरण शर्मा ने पहली बार भारतीय सामंतवाद के सम्पूर्ण पक्षों को लेकर उन पर सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत किया था। तब से लेकर आज तक न केवल इस पुस्तक के अंग्रेजी में एक से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, बल्कि भारतीय सामंतवाद के सर्वंगीण अध्ययन के लिए दूसरी कोई पुस्तक आज तक सामने नहीं आई है।
प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. शर्मा ने भारतीय सामंतवाद के जन्म से लेकर उसके प्रौढ़ होने तक प्रायः नौ सौ वर्षो के इतिहास का विवेचन किया है, जिसके दायरे में उन्होंने अनेक समस्याएँ उठाई हैं और कालांतर से उनके विषद विवेचन का मार्ग प्रशस्त किया है। क्षेत्र की दृष्टि से उनका यह अध्ययन मुख्यतः उत्तर भारत तक सीमित है और इसमें उन्होंने सामंतवाद के राजनितिक तथा आर्थिक पहलुओं पर ही विशेष रूप से विचार किया है। सामंतवादी व्यवस्था में किसानों और किराए के मजदूरों की दुर्दशा का सविस्तार विवेचन करते हुए प्रो. शर्मा ने दिखाया है कि कैसे श्रीमंत वर्ग अपने उच्चतर अधिकारों के द्वारा उपज का सारा अतिरिक्त हिस्सा हड़प लेता था और किसानों के पास उतना ही छोड़ता था जितना खा-पीकर वे उस वर्ग के लाभ के लिए आगे भी मेहनत-मशक्कत करते रह सकें।
भारतीय इतिहास, भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक न सिर्फ उपयोगी है बल्कि अपरिहार्य भी है। इसमें प्रस्तुत की गई मूल स्थापनाएं आज भी अकाट्य हैं।
Additional information
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2024 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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