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Description
भारतीय सौंदर्य बोध और तुलसीदास
मार्क्सवादी दृष्टि से सम्पन्न और प्रगतिशील विचार धारा के यशस्वी आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा (10 अक्टूबर, 1912-30 मई 2000) ने साहित्य आलोचना ही नहीं, भारतीय साहित्य एवं संस्कृति के साथ भाषा, समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शन, राजनीति एवं साहित्य के अन्य अनुशासनों पर भी विपुल लेखन किया। भारतीय और यूरोपीय साहित्य, संस्कृति तथा दर्शन पर विचार करते हुए डॉ. शर्मा ने बड़ी गहराई से यह अनुभव किया था कि जब तक भारतीय दृष्टि और भारतीय स्त्रोंतो से भारतीय मनीषा या भारतविद्या का सम्यक अध्ययन नहीं किया जाएगा-हम एकांगी उपनिवेशवादी सोच और अराजक निष्कर्षों के सामने बौने बने रहेंगे। यही कारण था कि भारतीय सभ्यता, संस्कृति और दर्शन को, इनके आरम्भ से जानने की और फिर तथ्यों-तर्कों और साक्ष्यों के आलोक में प्रस्तुत करने के संकल्प से दीप्त और उनकी एक-के-बाद-एक कई महत्वपूर्ण कृतियाँ आती चली गईं। इस बात पर भी उनका जोर रहा कि ऋग्वेद के अध्ययन बिना भारतीय चिन्तन एवं दर्शन को ठीक से नहीं समझा जा सकता है। अपनी चिन्तन परम्परा को जाने बिना किसी दूसरी धारा के प्रति न्याय कर पाना संभव नहीं।
अपना अन्तिम और अप्रतिम कृति भारतीय सौन्दर्य-बोध और तुलसीदास लिखने के मूल में उनका आग्रह भारतीय सौन्दर्य के उन कलात्मक प्रतिमानो की व्याख्या कर उस स्थान तक पहुँचना था, जो साहित्य, संगीत और स्थापत्य के क्षेत्र में निर्विवाद, श्रेष्ठ और शीर्षस्थ स्थान के अधिकारी रहे और आज तक जिनकी चुनौती नहीं टूटी है। इस दृष्टि से तुलसीदास, तानसेन और ताजमहल उनके लिए क्रमशः साहित्य, संगीत और स्थापन्य के न केवल उत्कृष्ट प्रतीक, बल्कि युगान्तकारी प्रतिमान भी रहे हैं। इस प्रतिमानत्रयी को भारतीय मध्यकाल के उत्कर्ष के रूप में रेखांकित करते हुए वे समस्त विश्व के भारतीय सौन्दर्य-बोध की श्रेष्ठता स्थापित करना चाहते थे। यह कृति उनके इसी यशस्वी संकल्प का प्रतिरूप है-जिसे साहित्य अकादेमी सगर्व और सहर्ष उनके असंख्य पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रही है। यह ग्रन्थ डॉ. शर्मा की विदिग्धता और वैदुष्य का प्रतिरूप है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher |
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