- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
भाषा का प्रश्न
हिंदी और उर्दू में बड़ा भेद है। प्रकृति या बोल के विचार से तो उर्दू हिंदी है पर प्रवृत्ति की दृष्टि से वह हिंदी की चहेती सौत है। हिंदी को मिटाने के लिए फारसी ने जो मायावी हिंदवी रूप धारण किया उसी का नाम आज उर्दू है। उर्दू हिंदी–रूप में छिपी फारसी है जो फारसी के लद जाने पर देश में चालू की गई। देश से उसे कोई प्रेम नहीं। वह फारस–अरब और न जाने कहाँ की दूती है। उसका ध्येय कुछ और ही है। उर्दू के इतिहास से अनभिज्ञ होने के कारण वह प्रवाद सहसा फैल गया कि उर्दू मुसलमानों की भाषा हैय उनकी मजहबी जवान है। उर्दू के जन्म से पहले हिंदी ही मुसलमानों की भाषा थी। उसी में धार्मिक पुस्तकें भी लिखी जाती थीं। उनका नाम भी हिंदी होता था। अभी उस दिन फजली ने ‘दहमजलिस’ को ‘करवल कथा’ के शुद्ध संस्कृत नाम से प्रचलित किया था और करवल को ‘करवला’ का द्योतक तथा पशुबल का बोधक बना लिया था। भारत के मुसलमानों ने भारत की भारती का निरादर तो तब किया जब वे कहीं के न रह गए। भाषा से परास्त होकर फारसी किस तरह उर्दू के रूप में दरबारी मजलिसों में चल निकली, इसकी चर्चा का यह स्थान नहीं। यहाँ इतना ही जान लीजिए कि आसमानी किताबों के पाबंद किसी जमीनी जबान को मजहबी जवान कह ही नहीं सकते। यही कारण है कि तुर्क और फारस आज अरबी का बहिष्कार करने पर भी सच्चे मुसलिम बने हुए हैं और भारत के मुसलमानों के नाज के कारण हो रहे हैं। हाँ, कट्टर अहमदी अवश्य ही नहीं रहे।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.