Bhikshuni
Bhikshuni
₹125.00 ₹105.00
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Author: Shivani
Pages: 119
Year: 2016
Binding: Paperback
ISBN: 9788183611145
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Description
अनुक्रम
- तोमार जे दोक्खिन मुख
- ज्यूडिथ से जयन्ती
- भिक्षुणी
- मामाजी
- अनाथ
- भूल
- सती
- मौसी
- प्रतीक्षा
- लाटी
तोमार जे दोक्खिन मुख
गम्भीर रात की गहन शून्यता में तमिलनाडु एक्सप्रेस तेजी से वन-अरण्यों को चीरती जा रही थी। उस सुदीर्घ यात्रा में अपने डिब्बे का एकान्त सहसा मुझे भयावह लगने लगा। एक बार कंडक्टर आकर, बड़ी नम्रता से पूछ कर चला गया था, ‘‘मैडम, यदि आपको अकेले सफर करने में आपत्ति हो तो बगल के डिब्बे में ऊपर एक बर्थ खाली है…’’
‘‘नहीं, मैं यहीं ठीक हूँ।’’ कह, मैंने उसका विनम्र प्रस्ताव फेर दिया था। अटपटे अनचीन्हें यात्रियों के सहचर्य से मुझे एकान्त ही अच्छा लगता है। किन्तु अँधेरा होते ही वह एकान्त मुझे सहमा गया। बत्ती जलाकर मैंने एक बार पढ़ी पत्रिकाओं को फिर उलटा-पलटा। चिटखनी ठीक से लगी है या नहीं, यह देखा। सिरहाने की खिड़की के दोनों शटर चढ़ा लिये। फिर भी न जाने कैसा भय लग रहा था। इससे पूर्व भी कई बार अकेले कूपे में यात्रा कर चुकी थी। किन्तु अस्तिबोध ने कभी नहीं सहमाया। मन ही मन मनाती जा रही थी कि किसी सदगृहस्थ का परिवार यात्री बन जाए, क्योंकि कंडक्टर कह गया था, नागपुर से प्रायः ही भीड़ बढ़ती है। नागपुर में कोई परिवार तो नहीं आया, किन्तु एक के बाद एक दो सहयात्रियों ने मेरे सशंकित चित्त को शांत कर दिया। एक महाराष्ट्रीय महिला केवल एक टोकरी और एक बटुआ लेकर ठीक सामने की बर्थ पर आकर बैठ गई तो मेराचित्त विषण्ण हो गया। मैं समझ गयी थी कि उसकी यात्रा निश्चय ही ह्रस्व होगी। शायद तीन-चार स्टेशन बाद ही उतर जाएगी क्योंकि संसार की कोई भी नारी दीर्घ यात्रा बिना सामान के सम्पन्न नहीं कर सकती। मेरा अनुमान ठीक ही था।
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Binding | Paperback |
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Language | Hindi |
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Publishing Year | 2016 |
Pulisher |
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