- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
Description
भोर के अँधेरे में
व्यवस्था के ख़ौफ़नाक मंज़र को चीरता कवि श्यौराज सिंह बेचैन का पाँचवाँ कविता संग्रह ‘भोर के अँधेरे में’ आपके हाथों में है। समाज सरोकार से सराबोर ये कविताएँ दलित दर्द का ज़िन्दा इतिहास हैं। मानो इनके काव्य इतिहास ने यह मुनादी कर दी हो कि दलित इस देश के सेवक ही नहीं बल्कि नैसर्गिक स्वामी भी हैं। ये कविताएँ स्थितियों से पलायन नहीं करतीं बल्कि मुठभेड़ करती हैं। भारत की मूलनिवासी दलित जनता की चित्तवृत्ति का जैसा आकलन इन कविताओं के द्वारा हुआ है वैसा अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। जिस बहिष्कृत भारत को अस्पृश्य बना कर सभ्यता से बाहर जंगल की ओर व गाँव के बाहर खदेड़ दिया गया था। यूँ उसका अस्तित्व ही लुप्त प्राय हो गया था। वह कवि की कविता में आकर जीवन्तता के साथ मुखरित हुआ है। यह विश्व साहित्य में लोकतान्त्रिक चेतना की बड़ी घटना है। कवि ने लगातार नया रचा है पर उसने अपने अतीत की डोर नहीं छोड़ी है। बहुमुखी असमानताओं से बेचैन कवि ‘भोर के अँधेरे में’ एक ऐसा शीर्षक देता है जो रैदास के निर्वर्ण सम्प्रदाय, कबीर के निर्गुण और फुले, अम्बेडकर के समतामूलक आधुनिकताबोध के बगैर सम्भव नहीं है। कवि बड़ा सपना देखता है, जिसमें लोकतन्त्र ही कविता में फूलता-फलता है। कवि को लगता है स्वराज रूपी भोर भी उसके लोगों के लिए नहीं है। खास कर दलित-वंचित के लिए भोर में भी अँधेरा है, आज़ादी में भी गुलामी है, यही पूरे काव्य कर्म का निचोड़ है, सारतत्व है और यही कवि की समूची बेचैनी का सबब और केन्द्रीय समस्या है। वह अस्पृश्यता रहित स्वतन्त्रता का सपना देखता है।
Additional information
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.