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Description
भृगु संहिता (फलित प्रकाश)
लेखकीय
भृगुसंहिता भारतीय ज्योतिषविद्या का एक विश्व-प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यह वह ग्रन्थ है जिसमें इस विश्व के प्रत्येक मनुष्य के भाग्य का लेखा-जोखा है। अपने आप में यह बात अविश्वसनीय लगती है पर यह सत्य है। भृगुसंहिता में प्रत्येक व्यक्ति के भाग्य को दर्पण की तरह देखा जा सकता है।
भृगुसंहिता एक विस्तृत ग्रन्थ है। आकार को लेकर नहीं बल्कि इस कारण कि इसमें भारतीय ज्योतिष के प्रत्येक पक्ष का सूक्ष्म विवरण दिया गया है। वस्तुतः यह एक तकनीकी है जिसका आविष्कार भृगु ऋषि ने किया था। इस तकनीकी के आधार पर लिखे गये प्रत्येक ग्रन्थ को भृगुसंहिता ही कहा जाता है। यह ज्योतिषविद्या की अमूल्य तकनीकी है जिसमें सारिणीबद्ध करके सभी प्रकार की कुंडलियों के फल जानने के तरीके का वर्णन है।
परन्तु आज जितनी भी भृगुसंहिता बाजार में उपलब्ध है, वे अधूरी हैं। इसमें अलग-अलग ग्रहों का फल बताया गया है और आशा की गयी है कि इनके सहारे सम्पूर्ण कुंडली का फल ज्ञात कर लिया जायेगा परन्तु कुंडली का फल अलग-अलग ग्रहों की स्थिति के फलों का संयुक्त रूप से प्रभावी समीकरण होता है। ग्रहों का प्रभाव एक दूसरे पर पड़ता है, भावों एवं राशियों का भी फल में हस्तक्षेप होता है। इन प्रचलित भृगुसंहिताओं में वह तकनीकी नहीं बतायी गयी है, जिसके द्वारा इनका सम्मलित सटीक फलादेश ज्ञात किया जा सके। इसके अतिरिक्त भी इनमें कई कमजोरियाँ एवं कमियाँ हैं जिससे प्राप्त भृगुसंहितायें निरर्थक ग्रन्थ बनकर रह गयीं है। भृगुसंहिताओं की इस कमी को देखते हुए मैंने इस ग्रन्थ को लिखने का संकल्प किया था। अन्ततः सोलह वर्षों तक प्राचीन पाण्डुलिपियोंज्योतिषाचार्यों की सलाह एवं अपने सहयोगी ज्योतिषविदों के कठिन परिश्रम के बाद यह ग्रन्थ तैयार हो पाया है। इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह हर ओर से सम्पूर्ण सरल एवं व्यवहारिक है। इसमें कुंडलीशुद्धि लग्नशुद्धि आदि से लेकर ग्रहों भावों एवं राशियों के सभी प्रकार के सम्बन्धों के प्रभाव को निकालने की तकनीकी बतायी गयी है। फल कथन करनेवाला यदि ज्योतिषी नहीं भी है तो वह किसी का फल सम्पूर्ण रूप से केवल इस पुस्तक की सहायता से प्राप्त कर सकता है। महादशा और अन्तर दशा सहित समस्त प्रकार के विाशिष्ट योग मुहुर्त, विवाह आदि का विस्तृत विचार एवं सभी ग्रहों की शान्ति के सभी प्रकार के (पूजा-अनुष्ठान टोटके-ताबीज तंत्रिक अनुष्ठान एवं रत्न) उपायों का भी विस्तृत विवरण दिया गया है।
भृगु संहिता का यह संस्करण एक अद्भुत, सम्पूर्ण एवं विलक्षण संस्करण है। ग्रंथ के महत्व एवं उपयोगिता का ज्ञान तो इसका सम्पूर्ण रूपेण अध्ययन करने पर ही ज्ञात हो सकता है तथापि हमारा विश्वास है कि भृगुसंहिता का कोई भी संस्करण इस ग्रंथ की उपयोगिता को प्राप्त नहीं कर सकता। आपके सुझावों का सदा स्वागत रहेगा।
इस पुस्तक को उपयोगी स्वरूप देने में बिहार (मिथिला) के प्रसिद्ध ज्थोतिषविद् श्री विकास कुमार ठाकुर एवं श्री उमेश कुमार मिश्र के साथ-साथ भोजपुर एवं बनारस के ज्योतिषाचार्यों पंडित मुधुसूदन पाण्डे एवं पंडित अरुण बिहारी का अपूर्व परिश्रम एवं सहयोग प्राप्त हुआ है। मैं इनके सहयोग के लिये इनका कृतज्ञ हूँ।
विषय सामग्री | ||||
प्रथम अध्याय : विषय-परिचय | ||||
1 | ज्योतिषशास्त्र क्या है? | 17 | ||
2 | तरंगों का महाविज्ञान | 18 | ||
3 | ज्योतिष का सृष्टिसिद्धान्त | 18 | ||
4 | ज्योतिष के नौ ग्रह का रहस्य | 18 | ||
5 | ज्योतिष का गोपनीय रहस्य | 19 | ||
6 | कुछ विशेष स्पष्टीकरण | 19 | ||
7 | जातक पर जन्म के समय के प्रभाव का कारण | 20 | ||
8 | जन्म स्थान के प्रभाव के कारण | 21 | ||
9 | सृष्टि के निर्माण का सिद्धान्त | 21 | ||
10 | कालगणना | 22 | ||
11 | ज्योतिषशास्त्र का अर्थ | 23 | ||
12 | ज्योतिष की उत्पत्ति | 24 | ||
13 | कर्मफल का दर्शन | 25 | ||
14 | ज्योतिषशास्त्र की शाखायें | 25 | ||
द्वितीय अध्याय:समय गणना के ज्योतिषीय माप | ||||
1 | खगोलमान | 28 | ||
2 | तिथि एवं पक्ष | 29 | ||
3 | तिथियों के स्वामी | 30 | ||
4 | तिथियों के स्वामीदेवता | 31 | ||
5 | तिथियों की संज्ञायें | 31 | ||
6 | सिद्ध-तिथियां | 31 | ||
7 | दग्ध तिथियाँ | 32 | ||
8 | शून्यमास तिथियाँ | 32 | ||
9 | मृत्यु योग तिथियाँ | 32 | ||
10 | पक्षरन्ध्र तिथियां | 33 | ||
11 | मास एवं वर्ष | 33 | ||
12 | ऋतु अयन तथा सम्वत्सर | 35 | ||
13 | बार | 36 | ||
14 | नक्षत्र | 37 | ||
15 | नक्षत्र और उनके स्वामी देवता | 38 | ||
16 | नक्षत्र चरणाक्षर | 40 | ||
17 | नक्षत्रों के स्वामीग्रह | 41 | ||
18 | नक्षत्रों के प्रकार | 41 | ||
19 | मासशून्य नक्षत्र | 42 | ||
20 | अशुभ नक्षत्र और उनके फल | 42 | ||
21 | मानव शरीर पर नक्षत्रों की स्थिति | 43 | ||
22 | नक्षत्रानुसार जातकफल | 44 | ||
23 | योग | 47 | ||
24 | योगों के स्वामी | 47 | ||
25 | करण | 48 | ||
26 | राशि | 49 | ||
27 | नक्षत्र चरणाक्षर और राशिज्ञान | 50 | ||
28 | राशियों के स्वामीग्रह | 51 | ||
29 | चर-अचर राशियां | 52 | ||
30 | राशियों की प्रकृति एवं उनके प्रभाव | 52 | ||
31 | शून्यसंज्ञक राशियाँ | 56 | ||
32 | जन्मराशि के प्रभाव | 56 | ||
33 | ग्रह | 66 | ||
34 | ग्रहों की प्रवृत्ति और प्रभाव | 68 | ||
35 | ग्रहों के बल | 69 | ||
36 | ग्रहों की तात्कालिक मित्रता-शत्रुता | 71 | ||
37 | अयन एवं अयन बल | 71 | ||
38 | ग्रहों के मूलत्रिकोण | 71 | ||
39 | मूलत्रिकोणस्थ ग्रहों के विशेष फल | 73 | ||
40 | ग्रहों का राशिभोग काल | 74 | ||
41 | ग्रहों की कक्षायें | 74 | ||
42 | ग्रहों का बलाबल क्रम | 75 | ||
43 | ग्रहों के बल के प्रकार | 75 | ||
44 | ग्रहों के अंश और उनमें उनकी स्थिति | 75 | ||
45 | स्वक्षेत्री ग्रह | 75 | ||
46 | ग्रहों की उच्चस्थिति | 76 | ||
47 | ग्रहों की निम्नस्थिति | 76 | ||
48 | ग्रहों की गतियाँ | 77 | ||
49 | ग्रहों का मैत्री-विचार | 77 | ||
50 | ग्रहों की कक्षायें | 78 | ||
51 | ग्रहों का उदयास्त | 78 | ||
52 | ग्रहों के देवता | 78 | ||
53 | सम्बन्धियों पर ग्रहों का प्रभाव | 79 | ||
54 | ग्रहों का शुभाशुभ | 79 | ||
55 | ग्रहों का शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रभाव | 79 | ||
56 | ग्रहों की दृष्टि | 80 | ||
57 | ग्रहों की दृष्टि और स्थान-सम्बन्ध | 84 | ||
58 | जातक की कुंडली की फलगणना में ग्रहों का प्रभाव | 85 | ||
59 | जन्मकुंडली के द्वादशभाव और उनके विषय | 86 | ||
60 | जन्मकुंडली में लग्न | 87 | ||
61 | जन्मकुंडली में जन्मराशि | 87 | ||
62 | जन्मकुंडली के द्वादशभाव और उनके नाम | 88 | ||
63 | भावों के प्रभावानुसार विशिष्ट नाम | 89 | ||
64 | भावों के अन्य विशिष्ट प्रभावानुसार नाम | 90 | ||
65 | भावों के विचारणीय विषय | 90 | ||
66 | भावों का शुभाशुभ ज्ञान | 93 |
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher |
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