Bina Kaling Vijay Ke

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Bina Kaling Vijay Ke

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Author: Yatindra Mishra

Availability: 5 in stock

Pages: 168

Year: 2024

Binding: Paperback

ISBN: 9789362879509

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

बिना कलिंग विजय के

यतीन्द्र मिश्र की कविताओं में मिलने वाले बहुध्वन्यात्मक प्रतिसंसार की विशेषता यह है कि यह इतिहास, मिथक और वर्तमान के मूल्यवान, सहेजने योग्य ताने-बाने से बुना गया है। इस कविता का आलम्बन एक समृद्ध साझा सांस्कृतिक उत्तराधिकार तो है ही, अपने निहितार्थ में यह फ़िलहाल के क्षरण का एक विडम्बनात्मक रेखांकन भी है। इनकी सजलता, सरसता और स्पर्शी सकारात्मकता पाठक मन को आविष्ट करती है। ये कलाओं के वैविध्यमय और वैभवपूर्ण संसार में किसी शरण्य की खोज में नहीं, उनके बृहत्तर आशयों के सन्धान के मोहक हठीलेपन के साथ जाती हैं।

इनमें जुलाहों की उँगलियों की पोरों में बरसों से चुभती हुई सुइयों की वेदनाएँ हैं, शमशेर और फ़ैज़ की यादें हैं, सहगल के हारमोनियम का बिसरा हुआ सुर है, चैप्लिन की मुस्कान के पीछे छुपी संघर्ष गाथा है, किसी और समय में हज़रतगंज में आ खड़े हुए वाजिद अली शाह की हैरानी है, लोककथाओं के पात्र और लोककण्ठ में बसे हुए गीत हैं और शोक की धीमी आँच में पकता हुआ मातृ-बिछोह का राग है। इन कविताओं में पंढरपुर नगर अपने अभंग के बोलों के साथ ढोल, डफली और झाँझ के समवेत में गूँजता है और चिदम्बरम सयाने पुरखे की तरह ऐश्वर्य, वीरता और त्याग की जीर्ण पाण्डुलिपि को सहेजता है। यह उसके व्यतीत गौरव का दिवसावसान है, जो डमरू की संजीवन ताल पर नर्तक की नृत्य गतियों में पुनर्भव हो जाता है।

कला की दुर्धर्ष जिजीविषा यहाँ इस तरह अपनी उत्कटता, अक्षयता और अदम्यता का एक विराट सांस्कृतिक संकेतक बनती है। यहाँ कोई चित्र, कोई साज़, कोई गीत, यहाँ तक कि झुकने जैसी सामान्य क्रिया भी एक संवेदन-यात्रा का प्रस्थान बिन्दु हो सकती है। प्रदर्शनवाद से परे यतीन्द्र की कविताएँ-हमारे लिए अनुभव के अदेखे द्वार खोलती हैं और अपनी अर्थाभा से हमें सम्पन्न बनाती हैं। यतीन्द्र की कविता समय के विस्तीर्ण प्रसार में हमारे सांस्कृतिक स्पन्दन के समर्थ और स्मरणीय अभिलेखन के लिए, मनुष्यता के पक्ष में विनम्र दृढ़ता से खड़े रहने के लिए और उसमें अपनी निष्कम्प आस्था के लिए अलग से अपनी अनन्य पहचान बनाती है।

– आशुतोष दुबे

★★★

यतीन्द्र की कविताओं के तीन सहज वर्ग बनते हैं-कविताओं में व्यक्त यथार्थबोध, जीवन-दृष्टि या उसका दर्शन-पक्ष तथा वह शिल्प, जिससे कविताओं का ताना-बाना बनता है। यतीन्द्र की कविताओं में जीवन तथा भाषायी संस्कारों का एक घनिष्ठ अंश है, इसीलिए कविताओं में जिए हुए जीवन का एक सुखद आभास बराबर बना रहता है। यतीन्द्र की समझ आधुनिकता को भारतीयता की परम्परा और स्मृतियों से जोड़कर देखने की एक बहुआयामी कोशिश है….

– कुँवर नारायण

★★★

यतीन्द्र मिश्र की प्रतिभा असन्दिग्ध है, मुझे उनकी रवानी और विविधता ने विशेष तौर पर प्रभावित किया। यतीन्द्र मिश्र की भाषा अपनी आवाज़ को साधने के प्रयास में व्यस्त और कहीं-कहीं व्यथित महसूस होती है और इसे भी मैं उनकी ईमानदारी की एक अलामत मानता हूँ।

– कृष्ण बलदेव वैद

★★★

कबीर के प्रसिद्ध प्रतिबिम्बों से यतीन्द्र कुछ नया बनाते हैं, हमारे ज़माने के लिए। उनके साथ हम भी उस अदृश्य घर में प्रवेश कर सकते हैं, उस तकली के टोक पर मिल सकते हैं, उस भाषा के गारे से अजीब ईंट बना सकते हैं।

– लिंडा हेस

★★★

यतीन्द्र की कविताएँ एक ऐसा महोत्सव उद्घाटित करती हैं, जिसमें सान्द्रता है और कोई शोर नहीं है। संगीत लोक की दीप्तियों को पकड़ने के लिए यतीन्द्र ने कविता में जादुई तत्त्वों का काफ़ी सहारा लिया है, जो कविता में एक नया मुहावरा आविष्कृत करने का प्रयास है।

– श्रीलाल शुक्ल

★★★

जो सुरों के बीच में, जैसे अस्फुट श्रुतियों का अनन्त पसरा होता है, यतीन्द्र की कविता के रग-रेशे में, दो शब्दों के बीच के पूरे आकाश में वैसे ही स्मृति-गन्ध फैली है; तरह-तरह की जातीय और गहन निजी स्मृतियों का एक पूरा संसार अपने विपुल वैभव में उनका क्षितिज रंगे रहता है। शास्त्र-पुराण-किंवदन्ती-लोक-साहित्य-फ़िल्म-संगीत-अनगिन स्रोतों से अन्तःपाठ डैने फैलाए हुए उठते हैं और उस नये तरह के ध्वन्यालोक में जीवन-जगत की कुछ बड़ी विडम्बनाएँ अष्टदल कमल-सी खुलती हैं।

– अनामिका

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Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2024

Pulisher

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