Brahm hi Satya Hai

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Brahm hi Satya Hai

Brahm hi Satya Hai

80.00 79.00

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Author: Swami Avdheshanand Giri

Availability: 4 in stock

Pages: 192

Year: 2016

Binding: Paperback

ISBN: 9788131005248

Language: Hindi

Publisher: Manoj Publications

Description

ब्रह्म ही सत्य है

प्रकाशकीय

श्लाकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रंथ कोटिभ:।

ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापर:।।

अर्थात् जो अनेक ग्रंथों में लिखा है, उसे मैं आधे श्लोक में यहां कह रहा हूं। ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है तथा जीव ब्रह्म ही है, कोई अन्य नहीं।

दार्शनिक दृष्टि से यह श्लोक अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इसमें अद्वैत दर्शन का प्रतिपादन सूत्र के रूप में किया गया है। इन दृश्यमान जगत में सत्य क्या है, मिथ्या क्या है तथा जीव और ब्रह्म में परस्पर संबंध है- इन महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर है इसमें।

इन सृष्टि में अनुस्यूत है ब्रह्म ! संसार का अधिष्ठापन ही ब्रह्म नाम से श्रुतियों द्वारा प्रतिपादित है। जो था, जो है और जो सदैव रहेगा- वही तो ब्रह्म है। सत्यनाम से ऋषियों-मनीषियों द्वारा वही कहा जाता है।

यहां मिथ्या शब्द असत् से भिन्न है। मिथ्या शब्द यहां प्रतीति होनेवाली वस्तु सत्य सी लगती है जबकि वह प्रतीति क्षण में नहीं। यही मिथ्यात्व है। इसमें संस्कारों तथा उसके परिणाम स्वरूप स्मृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

संसार के अस्तित्व को स्वीकार करने पर ही जीव है। संसार की संसार के रूप में प्रतीति के नष्ट होते ही ‘जीव’ का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। यह ऐसे ही है जैसे जागने पर स्वप्नकाल के द्रष्टा और दृश्य का को लोप हो जाता है।

वस्तुत: यह एकत्व और अद्वैत ही परमार्थ है जिसका प्रतिपादन आचार्य महामंडलेश्वर श्री स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने अपने विभिन्न प्रवचनों में किया है।

इस पुस्तक में प्रस्तुत है- जिज्ञासु पाठकों के लिए सरल-सुगम शब्दों में सत्य ही अलौकिक शब्दमयी झांकी !

सत्य का अर्थ है- जिसका तीनों कालों में बोध नहीं होता अर्थात् जो था, जो है और जो रहेगा।

इस दृष्टि से जगत् ब्रह्म-सापेक्ष है। ब्रह्म को जगत् के होने या न होने से कोई अंतर नहीं पड़ता। जिस प्रकार आभूषण के न रहने पर भी स्वर्ण की सत्ता निरपेक्ष भाव से रहती है, उसी प्रकार सृष्टि से पूर्व भी सत्य था। दूसरे शब्दों में, ब्रह्म का अस्तित्व सदैव रहता है। श्रुति का वचन है- सदेव सोम्येदग्रमासीत् अर्थात् हे सौम्य ! सृष्टि से पूर्व सत्य ही था।

वेदांत ग्रंथों में व्यावहारिक दृष्टि (सत्ता) से ब्रह्म के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए ईश्वर को कारण-ब्रह्म और जगत् को कार्य-ब्रह्म कहा गया है। इस कारण और कार्य रूप उपाधियों को नकारते हुए स्वामी रामतीर्थ ने सत्यानुभूति को इन शब्दों में अभिव्यक्त किया है-

न मैं बन्दा न खुदा था, मुझे मालूम न था

दोनों इल्लत से जुदा था, मुझे मालूम न था

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Paperback

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Language

Hindi

Publishing Year

2016

Pulisher

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