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चाणक्य नीति
प्रस्तावना
भारत की सभ्यता अत्यन्त प्राचीन होने के साथ-साथ ही अत्यन्त समृद्ध और सम्पन्न रही है। भारत में आर्यो की अत्यधिक बहुलता होने के कारण इसको आर्यवर्त के नाम से भी जाना जाता है। इसकी सीमाएं अफगानिस्तान से लेकर वर्मा (म्यंमार) तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैली हुयी थी। प्राचीन काल में भी भारत एक विशाल राज्य था। जो छोटे-छोटे कई साम्राज्यों में बँटा हुआ था। उसी में एक पाटिलीपुत्र नाम की राजधानी थी। जो इस समय पटना के नाम से जानी जाती है। यह एक विशाल शक्तिशाली और वैभव सम्पन्न राज्य था जिसे मगध कहते हैं। भारत में भी ऐसे ही कितने महापुरूषों ने जन्म हुआ है। जिनमें ‘चाणक्य’ भी एक ऐसे युग पुरूष का नाम है। जिनका नाम बड़े ही आदर तथा सम्मान के साथ लिया जाता है। उस समय मगध में नन्दवंश का साम्राज्य था नन्दवंश के पूर्व में कितने ही शक्तिशाली राजा हुए परन्तु चाणक्य के समय वहाँ का राजा भोग-तृष्णा में व्याप्त रहने वाला महानंद था। चाणक्य के पिता का नाम चणक था। वे नगर की सीमा के बाहर रहते थे। मगध का राजा अत्यन्त ही शक्तिशाली था। वह राजपाठ में ध्यान न देकर भोग-तृष्णा में ही लगा रहता था। उस मन्दबुद्धि महानन्द ने एक बार अपनी सभा में चाणक्य का भी अपमान कर दिया। अपमानित होकर चाणक्य ने बालक चन्द्रगुप्त को योग्य पात्र देख उसकी माँ से आज्ञा लेकर उसे अपने साथ पाटलिपुत्र ले आये और तक्षशिला में शिक्षा दी। चाणक्य ब्राम्हण था और शूद्र राजा नन्द को गद्दी से उतारना चाहता था। कुछ समय पश्चात् चाणक्य ने नन्द का संहार करके इसी चन्द्रगुप्त को भारत की गद्दी पर बैठाया।
चाणक्य बहुत विद्वान होते हुए भी एक निःस्वार्थी व्यक्ति था। चन्द्रगुप्त को इतना विशाल राज्य स्थापित कराने और सिकंदर के भेजे हुए गर्वनर सेल्यूकस को परास्त करने में उसने पूर्ण सहयोग दिया और उत्तम शासन व्यवस्था के लिये विभिन्न विभाग बनाये। चाणक्य ने ही “अर्थशास्त्र” नामक एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी। जो आज भी राज्य सत्ता चलाने में बेजोड़ परामर्श देती है।
चाणक्य ने भारत के अधिकांश भागों को मिलाकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। चाणक्य ने वस्तुतः चन्द्रगुप्त के अधीन एक केन्द्रीय सरकार की स्थापना भी की। उसकी सेना उस समय की सबसे शक्तिशाली सेना थी। सम्राट चन्द्रगुप्त को चाणक्य अपना सर्वाधिक प्रिय शिष्य मानता था और चन्द्रगुप्त भी उसे उतना ही सम्मान देता था।
‘चाणक्य नीति’ भी चाणक्य का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसके सूक्तों को पढ़कर उनके अनुसार कार्य करके व्यक्ति अपने पूरे जीवन को सफल बना सकता है। उनका सही अर्थ से ही सही निष्कर्ष निकाला जा सकता है। जिस प्रकार शस्र और शास्त्र, दण्ड और दण्डा। मात्र एक पाई के फर्क से सम्पूर्ण अर्थ ही बदल जाता है। उसी प्रकार उसके सूक्तों का अगर व्यक्ति सही अनुवाद नहीं करेंगे तो वह उसका अर्थ का अनर्थ भी कर सकते हैं। समय-समय पर लोगों ने ‘चाणक्य नीति’ के अनेक अनुवाद प्रकाशित किये परन्तु इस अनुवाद की विशेषता यह है कि इसमें ‘मूल संस्कृति’ के भावों की यथावत् रक्षा की गई है। जिससे इसे पढ़कर सामान्य व्यक्ति भी चाणक्य की कूटनीति का उचित स्थान पर उचित उपयोग कर सकता है।
– प्रमोद चन्द्र गुप्त
वाराणसी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Sanskrit & Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2007 |
Pulisher |
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