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Description
चाँद फाँसी अंक
इस शताब्दी के आरम्भ में जब हिन्दी- पत्रकारिता अपना स्वरूप ग्रहण करने के साथ-साथ परिपक्वता प्राप्त करती जा रही थी, तब हिन्दी की तत्कालीन प्रसिद्ध पत्रिका ‘चाँद’ ने अपना बहुचर्चित एवं विवादास्पद ‘फाँसी’ अंक प्रकाशित किया था। ‘चाँद’ के इस ‘फाँसी’ अंक ने पूरे देश में सनसनी फैला दी थी और ब्रिटिश सरकार ने विवश होकर इसे ज़ब्त करने का आदेश दिया था। फाँसी अंक में छपी सामग्री में मृत्यु-दंड की क्रूर और कुत्सित पद्धति पर अनेक लेख, कविताएँ और कहानियाँ थीं जिनमें इस पद्धति की निन्दा करने के साथ-साथ इस पर गहराई से सोचा गया था।
मान्यता है कि इस अंक के बहुत-से लेख सरदार भगत सिंह ने छद्म नामों से लिखे थे, इसलिए कहा जा सकता है कि तत्कालीन स्वाधीनता-संग्राम से जुड़े अनेक देशभक्त वीर भी इस अंक की प्रकाशन-प्रक्रिया से संबद्ध थे। नवम्बर, 1928 में प्रकाशित ‘चाँद’ का ‘फाँसी’ अंक अपनी निर्भीक और विचारोत्तेजक सामग्री के लिए आज भी हिन्दी पाठक वर्ग में जिज्ञासा और विस्मय का केन्द्र बना हुआ है। साथ ही, इसमें छपे लेखों की देशभक्तिपूर्ण चिन्तनधारा के कारण यह अंक वर्तमान युवा पीढ़ी के दिशा-निर्देश के लिए भी प्रासंगिक और अपरिहार्य हो गया है।
पुस्तकाकार रूप में इसका पुनःप्रकाशन इस उद्देश्य से किया गया है ताकि हमारी युवा पीढ़ी तत्कालीन हिन्दी पत्रकारिता से परिचित हो सके। साथ ही, हिन्दी के जिज्ञासु पाठकों को ‘फाँसी’ अंक की ऐतिहासिक महत्त्व की सामग्री सहज उपलब्ध हो सके। इसको पुनर्मुद्रित करने का सुझाव श्री नरेशचन्द्र चतुर्वेदी ने दिया था। इसके पुनःप्रकाशन के तहत प्रस्तुत रूप में इस अंक की भूमिका भी चतुर्वेदी जी ने ही लिखी है। इसके अतिरिक्त ‘चाँद’ का यह फाँसी अंक बिलकुल अपने मूल रूप में ही प्रस्तुत किया जा रहा है।
– रणवीर दिनेश
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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