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Description
चरितानि राजगोंडानाम्
छत्तीसगढ़ अपनी पुरासंपदा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है और यहाँ अनेक पुरातात्विक महत्त के स्थल मौजूद हैं। यहाँ का पुरातात्विक इतिहास पूर्व गुप्तकाल से ही उपलब्ध होने लगता है। छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक काल की सभ्यता का विकास आरंभिक काल से हो गया था, जिसका प्रमाण यहाँ से प्राप्त हुई मुद्राएँ, शिलालेख, ताम्रपत्र एवं पुरासंपदा हैं। यहाँ अनेक स्थानों से प्राचीन मुद्राएँ (सिक्के) प्राप्त हुई हैं। नारापुर, उदेला, ठठारी (अकलतरा) आदि स्थानों से पञ्च मार्क मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं। प्रदेश में धातु-शिल्प का प्रचलन था और अत्यंत उच्चकोटि की प्रतिमाएं यहाँ ढाली जाती थीं। इस प्रदेश में लोह शिल्प की भी प्राचीन परंपरा विद्यमान है।
अगरिया जनजाति लौह बनाती थी। इस लोहे से वे लोग खेती के औजार तथा दैनंदिन उपयोग में आनेवाली वस्तुएं तैयार करते थे। छत्तीसगढ़ में ईंटों द्वारा निर्मित मंदिर शैली भी प्राचीन काल से विद्यमान है। सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर इस शैली की पकाई हुई ईंटो से निर्मित एक विशाल एवं भव्य ईमारत है। मृणमूर्तियों की कलाकृतियाँ छत्तीसगढ़ के अनेक पुरातात्विक स्थलों से प्राप्त होती हैं। मृणमूर्तियों में खिलोने, मुद्राएँ, पशु आकृतियाँ प्रमुख हैं। ये मृणमूर्तियां भी उतनी ही प्राचीन हैं जितनी कि पुरस्थालों से प्राप्त होनेवाली अन्य कलाकृतियाँ व् सामग्री।
इस पुस्तक में विद्वान लेखक ने छत्तीसगढ़ के सभी पारंपरिक शिल्प-रूपों का प्रमाणिक परिचय देते हुए प्रदेश की बहुमूल्य थाती को संजोया है। आशा है, पाठक इस ग्रंथ को उपयोगी पाएंगे और अपनी मुहँ संस्कृतक धरोहर से परिचित होंगे।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2008 |
Pulisher |
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