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Description
चरखायन
ऋग्वेद से लेकर कबीर, खुसरो और गांधी तक, और फिर आज तक, चरखा की विकास-यात्रा लगभग ढाई हजार साल पुरानी है। इस लंबी यात्रा में चरखा के रूप-रंग, डिजाइन और गति में आमूल-चूल परिवर्तन हुए; साथ ही, चरखा की गति और गुणवत्ता में भी। प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने चरखा के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए चरखा के संबंध में हमारे ज्ञान में श्रीवृद्धि की है। इस क्रम में, चरखा के सामान्य परिचय, उसके यांत्रिक विवरण एवं प्रकार तथा उसके वर्गीकरण की चर्चा करते हुए गांधी और चरखा के अंतर्संबंध पर भी प्रकाश डाला गया है। साहित्य, लोकगीतों और कार्टूनों तक में ‘चरखा’ को देखने, समझने की कोशिश की गई है। चरखा के उत्पाद, खादी, के बिना चरखा की चर्चा अधूरी ही मानी जाएगी। स्वाभाविक ही, पुस्तक में खादी, गांधी के खादी-दर्शन, विनोबा के खादी चिंतन समेत खादी का आर्थिक विश्लेषण पुस्तक के प्रतिपाद्य विषय बने हैं। डाक-टिकटों में भी चरखा और खादी रूपायित हुए हैं—इस पहलू को भी पुस्तक में सम्मिलित किया गया है। कुल मिलाकर, इस पुस्तक में ‘दास्तान-ए-चरखा’ सर्वांगरूपेण रूपायित और भासित हुआ है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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