Chautha Khambha Private Limited

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Chautha Khambha Private Limited

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199.00 159.00

In stock

199.00 159.00

Author: Dilip Mandal

Availability: 5 in stock

Pages: 152

Year: 2022

Binding: Paperback

ISBN: 9788126728299

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

चौथा खम्भा प्राइवेट लिमिटेड

जनविरोधी होना मीडिया का षड्यंत्र नहीं, बल्कि उसकी संरचनात्मक मजबूरी है। एक समय था जब मास मीडिया पर यह आरोप लगता था कि वह कॉरपोरेट हित में काम करता है। 21वीं सदी में मीडिया खुद कॉरपोरेट है और अपने हित में काम करता करता है। कॉरपोरेट मीडिया यानी अखबार, पत्रिकाएँ, चैनल और अब बड़े वेबसाइट भी प्रकारान्तर में पूँजी की विचारधारा, दक्षिणपन्थ, साम्प्रदायिकता, जातिवाद और तमाम जनविरोधी नीतियों के पक्ष में वैचारिक गोलबन्दी करने की कोशिश करते नजर आते हैं।

पश्चिमी देशों के मीडिया तंत्र को समझने के लिए नोम चोम्स्की और एडवर्ड एक हरमन ने एक प्रोपेगंडा मॉडल दिया था। इसके मुताबिक, मीडिया को परखने के लिए उसके मालिकाना स्वरूप, उसके कमाई के तरीके और खबरों के उसके स्रोत का अध्ययन किया जाना चाहिए। इस मॉडल के आधार पर चोम्सकी और हरमन इस नतीजे पर पहुँचे कि अमेरिकी और यूरोपीय मीडिया का पूँजीपतियों के पक्ष में खड़ा होना और दुनिया भर के तमाम हिस्सों में साम्राज्यवादी हमलों का समर्थन करना किसी षड्यंत्र के तहत नहीं है। मीडिया अपनी आन्तरिक संरचना के कारण यही कर सकता है।

साम्राज्यवाद को टिकाए रखने में मीडिया कॉरपोरेशंस का अपना हित है। उसी तरह, पूँजीवादी विचार को मजबूत बनाए रखने में मीडिया का अपना स्वार्थ है। भारत के सन्दर्भ में चोम्स्की और हरमन के प्रोपेगंडा मॉडल में एक तत्त्व और जुड़ता है। वह है भारत की सामाजिक संरचना। इस नए आयाम की वजह से भारतीय मुख्यधारा का मीडिया पूँजीवादी के साथ साथ जातिवादी भी बन जाता है। उच्च और मध्यवर्ग में, ऊपर की जातियों की दखल ज्यादा होने के कारण मीडिया के लिए आर्थिक रूप से भी जरूरी है कि वह उन जातियों के हितों की रक्षा करे। आखिर इन्हीं वर्गों से ऐसे लोग ज्यादा आते हैं, जो महत्त्वपूर्ण खरीदार हैं और वजह से विज्ञापनदाताओं को मीडिया में इनकी उपस्थिति चाहिए।

यह एक ऐसा दुश्चक्र है, जिसकी वजह से भारतीय मीडिया न सिर्फ गरीबों, किसानों, ग्रामीणों और मजदूरों बल्कि पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों की भी अनदेखी करता है। मीडिया के इस स्वरूप के पीछे किसी की बदमाशी या किसी का षड्यंत्र नहीं है। यह मीडिया और समाज की संरचनात्मक बनावट और इन दोनों के अन्तर्सम्बन्धों का परिणाम है।

प्रस्तुत किताब इन्हीं अन्तर्सम्बन्धों को समझने की कोशिश है। इसे जानना मीडिया के विद्यार्थियों के साथ ही तमाम भारतीय नागरिकों के लिए आवश्यक है, क्योंकि जाने-अनजाने हम सब मीडिया से प्रभावित हो रहे हैं।

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Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Publishing Year

2022

Pulisher

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