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Description
छाया मत छूना मन
घास-फूस के टूटे कच्चे घर ! आकाश की झीनी छत ! धरती पर कच्ची मिट्टी की मैली चादर ! दो जून रूखी-सूखी मिल पाना भी मुश्किल…। मर-मरकर जीने वालों की यह व्यथा-कथा आज का युग-सत्य भी है, कहीं। बर्फीले पर्वतीय क्षेत्र की इस कथा में एक अंचल विशेष की धरती की धड़कन है, एक जीता-जागता अहसास भी। गोमती, पिरमा, कुन्नू के माध्यम से संत्रस्त मानव-समाज के कई चित्र उजागर हुए हैं। इसलिए यह कुछ लोगों की कहानी, कहीं ‘सबकी कहानी’ बन गयी है – देश-काल की परिधि से परे।
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Publishing Year | 2020 |
Language | Hindi |
Pages | |
Pulisher |
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