Chinhaar

-26%

Chinhaar

Chinhaar

350.00 260.00

In stock

350.00 260.00

Author: Maitriye Pushpa

Availability: 5 in stock

Pages: 144

Year: 2019

Binding: Hardbound

ISBN: 9788188118687

Language: Hindi

Publisher: Kitabghar Prakashan

Description

चिह्नार

‘‘माँ, लगाओ अँगूठा !’’ मँझले ने अँगूठे पर स्याही लगाने की तैयारी कर ली, लेकिन उन्होंने चीकू से पैन माँगकर टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में बड़े मनोयोग से लिख दिया-‘कैलाशो देवी’। उन्हें क्या पता था कि यह लिखावट उनके नाम चढ़ी दस बीघे जमीन को भी छीन ले जाएगी और आज से उनका बुढ़ापा रेहन चढ़ जाएगा।

रेहन में चढ़ा बुढ़ापा, बिकी हुई आस्थाएँ, कुचले हुए सपने, धुँधलाता भविष्य-इन्हीं दुःख-दर्द की घटनाओं के ताने-बाने से बुनी ये कहानियाँ इक्कीसवीं शताब्दी की देहरी पर दस्तक देते भारत के ग्रामीण समाज का आईना हैं। एक ओर आर्थिक प्रगति, दूसरी ओर शोषण का यह सनातन स्वरुप ! चाहे ‘अपना-अपना आकाश’ की अम्मा हो, ‘चिन्हार’ का सरजू, या ‘आक्षेप’ की रमिया, या ‘भँवर’ की विरमा-सबकी अपनी-अपनी व्यथाएँ हैं, अपनी-अपनी सीमाएँ!

इन्हीं सीमाओं से बँधी, इन मरणोन्मुखी मानव-प्रतिमाओं का स्पंदन सहज ही सर्वत्र अनुभव होता है-प्रायः हर कहानी में।

लेखिका ने अपने जिए हुए परिवेश को जिस सहजता से प्रस्तुत किया है, जिस स्वाभविकता से, उससे अनेक रचनाएँ, मात्र रचनाएँ न बनकर, अपने-अपने समय का, अपने समाज का एक दस्तावेज बन गई हैं।

 

दूसरे संस्करण पर

मैं भूमिका लिखने के पक्ष में नहीं हूँ, ऐसा दावा भला कैसे कर सकती हूँ, क्योंकि ‘चिह्नार’ और ‘बेतवा बहती रही’ इन दोनों पुस्तकों की भूमिका लिख चुकी हूँ, और अब ‘चिह्नार’ के दूसरे संस्करण पर फिर….। वैसे भूमिका लिखना पाठक को रचना की ऐसी कुंजी पकड़ाना है, जो उसका विवेक छीनकर ताला अपने ढंग से खोलने का संकेत देती है।

….लेकिन यहाँ मेरा इस तरह का कोई इरादा नहीं। केवल पहले-पहल की कहानियों के पात्रों के मनोभावों की भूमि तैयार करने के प्रति एक स्वीकरोक्ति है, जिसे देने की इच्छा बार-बार जागती रही।

दरअसल पहले-पहल जब लेखक का साहित्य-क्षेत्र में प्रवेश होता है, तो वह शब्द की विराट दुनिया को चकाचौंध होकर देखता है। वह कहाँ खड़ा है, इससे बेखबर-सा। लिखने की चुनौतियों से ज्यादा अपना नाम छपा देखकर विभोर हो जाता है। कुछ भ्रम भी पाले रहता है—पाठक को प्रभावित करने के लिए। पता नहीं औरों के साथ ऐसा हुआ या नहीं, लेकिन मेरे साथ ऐसा ही हुआ—करुणा के साथ दया, संवेदना के साथ तरस और अभिव्यक्ति को तरल भावुकता में सानकर छायावादी भाषा के सहारे लिखने लगी—सांस्कृतिक तत्सम शब्दों के व्यामोह से पीड़ित, लेकिन एक छोटी-सी ताकतवर लौ के साथ, जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अँधेरे को चीरकर मानवीय मूल्यों को झलका सके, जगमगा सके।

कालक्रम के हिसाब से कहूँ तो मैं बहुत जल्दी ही महसूस करने लगी कि कहानी का मुहावरा बदल जाना चाहिए। निष्ठुर समय से टकराने के लिए अपने दूसरे कहानी संग्रह ‘ललमनियाँ’ तक आते-आते लिखावट के तेवर धारदार लेकिन ठंडी भाषा अख्तियार करते चले गये, जो गर्म लोहे की तरह लचकने से बच सकें।

‘चिह्नार’ की कहानियों के बारे में चर्चा करते हुए हंस-संपादक श्री राजेन्द्र यादव ने कहा था, ‘‘तुमने इन दस्तावेजों में अनुभवों की बहुमूल्य पूँजी को बेदर्दी से खर्च किया है।

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

Reviews

There are no reviews yet.


Be the first to review “Chinhaar”

You've just added this product to the cart: