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Description
डबरे पर सूरज का बिंब
हिन्दी के महान रचनाकार मुक्तिबोध की प्रतिनिधि गद्य रचनाओं का अनूठा संकलन है। सामान्यतया लोग मुक्तिबोध की चर्चा कवि के रूप में करते हैं, किंतु तथ्य यह है कि इन्होंने गद्य भी विपुल मात्रा में लिखा है। ध्यातव्य है कि छह खंडों में प्रकाशित रचनावली के मात्र दो खंड कविताओं के हैं, शेष चार खंडों के सतरह सौ से अधिक पृष्ठों में कहानियां, निबंध, आलोचना, डायरी, पत्र, राजनीतिक लेख आदि है। मानवीय अस्तित्व के जिन निजी और सामाजिक प्रश्नों के साथ, कला और साहित्य-सृजन के सवालों की पड़ताल के लिए मुक्तिबोध को मार्क्सवाद से ठोस आधार पर प्राप्त हुआ था, उसी प्रखर वैचारिक पृष्ठभूमि पर अंतहीन जिरह के दौरान इन्होंने जीवन और सृजन के प्रश्नों का परीक्षण अपनी गद्य रचनाओं में किया है। ये गद्य एक सच्चे रचनाकार के आत्म संघर्ष, जीवन संघर्ष और सृजनात्मक संघर्ष के प्रमाणिक दस्तावेज हैं। चयनकर्ता ने बड़ी सावधानी से इनकी रचनाओं का चयन निबंध, समीक्षाएं, कहानियां, डायरी, मूल्यांकन और राजनीति विषयक लेख से किया है और इसी तरह छह खंडों में इसे रखा है। मुक्तिबोध जैसे महान रचनाकार की विराट रचनादृष्टि को एक किताब में पूरी तरह जुटाना असंभव है पर इतना तय है कि यह पुस्तक, मोटे तौर पर पाठक को मुक्तिबोध के पूरे जीवन-दर्शन और रचना-फलक का परिचय देगी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2012 |
Pulisher |
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