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दर्द जो सहा मैंने…
‘दर्द जो सहा मैंने…’ आशा आपराद की आत्मकथा है। ‘एक भारतीय मुस्लिम परिवार’ में जन्मी ऐसी स्त्री की गाथा जिसने बचपन से स्वयं को संघर्षो के बीच पाया। संघर्षो से जुजते हुए किस प्रकार आशा ने शिक्षा प्राप्त की, परिवार का पालन-पोषण किया, अपने घर का सपना साकार किया। यह सब इस पुस्तक के शब्द-शब्द में व्यंजित है। अपनी माँ से लेखिका को जो कष्ट मिले, उनका विवरण पढ़कर किसी का भी मन विचलित हो सकता है। लेकिन पिता का स्नेह इस तपते रेतीले सफ़र में मरूद्यान की भांति रहा। इस आत्मकथा में आशा आपराद ने जीवन की गहराई में जाकर और भी अनेक रिश्ते-नातों का वर्णन किया है। सुख-दुःख, मिलन-बिछोह और आभाव-उपलब्धि के धागों से बुनी एक अविस्मरणीय आत्मकथा है।
‘दर्द जो सहा मैंने…’ ‘मनोगत’ में आशा आपराद ने लिखा है : मेरी किताब सिर्फ ‘मेरी’ नहीं, यह तो प्रतिनिधिक स्वरुप की है, ऐसा मैं मानती हूँ। हमारा देश तो स्वतंत्र हुआ लेकिन यहाँ का इंसान ‘गुलामी’ में जी रहा है। अगर यह सच न होता तो आज भी औरतों को, पिछड़े वर्ग को, गरीब वर्ग को अधिकार और न्याय के लिए बरसों तक झगड़ना पड़ता क्या। आज भी स्त्रियों पर अनंत अत्याचार होते हैं। दहेज़ के लिए आज भी कितनों को जलना पड़ता है। बेटी पैदा होने से पहले ही उसे गर्भ में ‘मरने का’ तंत्र विकसित हो गया है। मैं चाहती हूँ, जो स्त्री-पुरुष गुलामी का दर्द, अन्याय सह रहे हैं, शोषित हैं, अत्याचार में झुलस रहे हैं, उन सबको अत्याचार के विरोध में लड़ने की, मुकाबला करने की शक्ति प्राप्त हो, बल प्राप्त हो।
निश्चित रूप से यह आत्मकथा प्रत्येक पाठक को प्रेरणा प्रदान करेगी। मराठी से हिंदी में अनुवाद स्वयं आशा आपराद ने किया है। जो अपने मराठी आस्वाद के चलते एक अद्भुत प्रदान करता है।
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2013 |
Pulisher |
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