Das Saal : Jinse Desh Ki Siyasat Badal Gai
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दस साल : जिनसे देश की सियासत बदल गई
भारत ने 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ी राज से मुक्त होने के बाद संसदीय लोकतंत्र का रास्ता चुना और 1970 का दशक इस यात्रा का एक अहम पड़ाव था जिसका दूरगामी असर देश की सियासत, शासन पद्धति और कुल मिलाकर देश की जनता पर पड़ा।
सत्तर के दशक को ‘इन्दिरा का दशक’ भी कहा जा सकता है। वह 1971 में गरीबी हटाओ के सियासी नारे के साथ पूरे दमखम सत्ता में लौटीं थीं। बांग्लादेश युद्ध में मिली कामयाबी ने इन्दिरा गांधी को लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचा दिया और फिर वह एक-एक कर साहसिक फैसले करती चली गईं, जिनमें प्रिवी पर्स की समाप्ति और कोयले का राष्ट्रीयकरण शामिल हैं। इसी दौर में जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई की अगुआई में हुए छात्र आन्दोलन ने इन्दिरा के लिए अभूतपूर्व चुनौतियाँ पेश की, जिसकी परिणति देश ने आपातकाल के रूप में देखी। आपातकाल ने नागरिक आजादी को संकट में डाल दिया था। इसी दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नए सिरे से उभार भी दिखा।
आजादी के पचहत्तरवें साल में प्रकाशित यह किताब सत्तर के दशक के ऐसे ही पन्नों को खोलती है और उन पर नई रोशनी डालती है। अनुभवी पत्रकार सुदीप ठाकुर की यह शोधपरक किताब रोचकता से भरपूर है; और निष्पक्षता से हमारे लोकतंत्र के एक अहम दशक की पड़ताल करती है, जब कमोबेश वैसे ही सवाल आज हमारे सामने खड़े हैं।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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