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Description
दीपशिखा
दीप-शिखा में मेरी कुछ ऐसी रचनाएं संग्रहीत हैं जिन्हें मैंने रंगरेखा की धुंधली पृष्ठभूमि देने का प्रयास किया है। सभी रचनाओं को ऐसी पीठिका देना न सम्भव होता है और न रूचिकर, अतः रचनाक्रम की दृष्टि से यह चित्रगीत बहुत बिखरे हुए ही रहेंगे।
मेरे गीत अध्यात्म के अमूर्त आकाश के नीचे लोक-गीतों की धरती पर पले हैं।
1 | चिन्तन के कुछ क्षण | 1 Se 40 | |||||||
2 | दीप मेरे जल अकम्पित | 43 | |||||||
3 | पंथ होने दो अपरिचित | 45 | |||||||
4 | ओ चिर नीरव | 47 | |||||||
5 | प्राण हँस कर ले चला जब | 49 | |||||||
6 | सब बुझे दीपक जला लूँ | 51 | |||||||
7 | हुए झूल अक्षत | 53 | |||||||
8 | आज तार मिला चुकी हूँ | 54 | |||||||
9 | कहाँ से आये बादल काले | 56 | |||||||
10 | यह सपने सुकुमार | 58 | |||||||
11 | तरल मोती से नयन भरे | 59 | |||||||
12 | विहंगम-मधुर स्वर तेरे | 60 | |||||||
13 | जह यह दीप थके तब आना | 62 | |||||||
14 | यह मन्दिर का दीप | 63 | |||||||
15 | धूप-सा तन दीप-सी मैं | 65 | |||||||
16 | तू धूल-भरा ही आया | 66 | |||||||
17 | जो न प्रिय पहचान पाती | 68 | |||||||
18 | आँसुओं के देश में | 69 | |||||||
19 | गोधूली अब दीप जगा ले | 71 | |||||||
20 | मैं न यह पथ जानती री | 73 | |||||||
21 | झिप चली पलकें | 74 | |||||||
22 | मिट चली घटा अधीर | 76 | |||||||
23 | अलि कहाँ सन्देश भेजूँ | 78 | |||||||
24 | मोम-सा तन पुल चुका | 79 | |||||||
25 | कोई यह आँसू आज माँग ले जाता | 81 | |||||||
26 | मेघ-सी घिर | 82 | |||||||
27 | निमिष-से मेरे विरह के कल्प बीते | 84 | |||||||
28 | सब आँखों के आँसू उजले | 85 | |||||||
29 | फिर तुमने क्यों शूल बिछाये | 87 | |||||||
30 | मैं क्यों पूछूं यह | 88 | |||||||
31 | आज दे वरदान | 90 | |||||||
32 | प्राणों ने कहा कब दूर | 91 | |||||||
33 | सपने जगाती आ | 93 | |||||||
34 | मैं पलकों में पाल रही हूँ | 95 | |||||||
35 | गूंजती क्यों प्राण-वंशी | 96 | |||||||
36 | क्यों अश्रु न हो श्रृंगार मुझे | 97 | |||||||
37 | शेषमाया यामिनी | 99 | |||||||
38 | तेरी छाया में अमिट रंग | 100 | |||||||
39 | आँसू से धो आज | 102 | |||||||
40 | पथ मेरा निर्वाण बन गया | 103 | |||||||
41 | प्रिय मैं जो चित्र बना पाती | 104 | |||||||
42 | लौट जा, जो मलय मारुत के झकोरे | 106 | |||||||
43 | पूछता क्यों शेष कितनी रात | 107 | |||||||
44 | तुम्हारी बीन ही में बज रहे हें | 108 | |||||||
45 | तू भू के प्राणों का शतदल | 109 | |||||||
46 | पुजारी दीप कहीं सोता है | 111 | |||||||
47 | घिरती रहे रात | 113 | |||||||
48 | जग अपना भाता है | 115 | |||||||
49 | मैं चिर पथिक | 117 | |||||||
50 | मेरे ओ विहग-से गान | 118 | |||||||
51 | सजल है कितना सवेरा | 119 | |||||||
52 | अलि मैं कण-कण को जान चली | 120 |
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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