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Description
दीवारें सुन रही हैं…
डॉ. सुरेश अवस्थी हिन्दी मंचों और साहित्य की एक जिम्मेदार और जानी मानी शख्सियत हैं। इनका ग़ज़ल प्रेम दो समुन्दरों को मिलाने वाला एक ऐसा पुल है जो गहरे नीले पानियों पर फिक्रो मुहब्बतों का शामियाना लगाता है। ग़ज़ल कहने के लिए जिस जज़्बे और ख़ुलूस की जरूरत होती है, वो तमाम आकृतियाँ और परछाइयाँ मैंने सुरेश की आँखों में तैरती हुई देखी हैं, जो बेजान होते हुए भी बातें करती हैं…धड़कती हैं।
मैंने उनकी चंद ग़ज़लें पढ़ी और सुनी हैं जिनसे अंदाजा होता है कि उनकी गजल की गहरी झील के सुथरे, शीतल और मीठे पानी की तह में बहुत कीमती और आबदार मोती छुपे हुए हैं। उनकी ग़ज़लों से तितलियों और जुगनुओं के जिस्म से आती हुई खुशबू महसूस होती है। मेरी दुआ है कि वो ग़ज़लों की दुनिया में भी वही मुकाम हासिल करें जो उन्होंने हिन्दी साहित्य में हासिल की है।
– डॉ. राहत इंदौरी
डॉ. सुरेश अवस्थी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सुप्रसिद्ध कवि हैं। आपने रचना धर्मिता को बहुत ही सफलता पूर्वक अंजाम दिया है। व्यंग्य, मुक्तक, गीत और कविता की अलग-अलग विधाओं में सृजन करते हुए आप सुख़न की उस बेहद नाजुक सिन्फ (विधा) तक आ पहुँचे हैं जिसे ग़ज़ल कहते हैं। आपकी तख़लीक की गई ग़ज़लों का मैंने तहे दिल से पढ़ा है और महसूस किया है कि आपने अपनी ग़ज़लों के जरिए अपने जज़्बात और एहसासात पाठकों तक बहुत ही खूबसूरती से पहुँचाए हैं। यूँ तो आपकी ग़ज़लों का हर शेर काबिले तारीफ है लेकिन फिर भी इखितसार से काम लेते हुए मैं यहाँ आपके दो शेर पाठकों को सौंप रहा हूँ –
कोई सुनता नहीं किसी को यहाँ
यह तो बहरों की राजधानी है
तुम शराफ़त से ज़मीं पर आओ वरना फिर
छुब्ध जनता के अचानक स्वर कड़े हो जाएंगे
मैं आपके साहित्यिक सफर पर आपकी बुलंदी की कामना करता हूँ।
– विजेन्द्र सिंह परवाज
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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