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देहरी भई विदेस
इस ग्रंथ में संकलित सभी आत्मकथांश और आत्मकथ्य किसी न किसी स्तर की प्रतिष्ठित और स्थापित, जानी-मानी लेखिकाओं का योगदान है। सत्य है कि आत्मकथा उन लोगों की अभिव्यक्ति का सीधा औजार बन चुकी है जो अभी तक हाशिए पर रहते आए हैं और स्वयं अपने इतिहास से भी अपरिचित हैं। इतिहास में दाखिल होने के लिए भाषा में अंकित होना जरूरी है। किसी भी इच्छित और आयोजित परिवर्तन के लिए इतिहास के प्रति जागरूकता और नियति के लिए चुनौती स्वयं अनिवार्य हो जाती है। जो अपना इतिहास आज रचना शुरू कर रहे हैं उनके लिए सबसे सुगम और शीघ्र तरीका स्वयं अपने जीवन को ‘कथंत’ और ‘पठंत’ में बदलना है। इस संदर्भ में आत्मकथा, अभिव्यक्ति के एक साहित्यिक प्रकार की अपेक्षा राजनीतिक-सामाजिक दस्तावेज के रूप में अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, जिसके सहारे जूलिएट मिशेल के शब्दों में ‘पर्सनल इज पोलिटिकल’ का विमर्श रचा जाता है। यहां वह ‘व्यक्ति वैशिष्ट्यवाद’ का अगला उदाहरण नहीं, एक समूचे समुदाय के सामान्य जीवन की उन यातनाओं और यंत्रणाओं का नमूना है जो हर जीवन में समान रूप से मौजूद होने के बावजूद एक गोपनीयतारक्षी चुप्पी की साजिश के तहत हर व्यक्ति के जीवन में अलग-अलग अतः व्यक्तिगत बनी रहती है।
इस ‘व्यक्तिगत’ यंत्रणा के गुणनफल की सामूहिक-सामुदायिक यातना के रूप में पहचान ही परिवर्तन के लिए राजनीतिक संघर्ष की पहली सीढ़ी है।
यहां प्रस्तुत आत्मकथांशों और आत्मकथ्यों के संकलन के पीछे यही आशा सक्रिय है, पंद्रह विशिष्ट स्त्रियों द्वारा अपने होने की दास्तान दर्ज करने की कोशिश में छिपी व्यक्तिगत यंत्रणाओं में सामुदायिक यातना की तसवीर खोज निकालने की आशा।…हिंदी में अभी तो यह एक शुरुआत भर है।
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Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2013 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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