Dekhna

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795.00 695.00

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Author: Akhilesh Bhopal

Availability: 5 in stock

Pages: 214

Year: 2017

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126729777

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

देखना
उन दिनों मैं John Berger की किताब ‘Ways of Seeing’ पढ़ रहा था और इस पढऩे के दौरान ही मुझे यह विचार आया कि लेखकों, कवियों का देखना चूँकि बहुत अलग है, साथ ही इस बात पर भी ध्यान गया कि शब्द और चित्र का नाता भी गहरा है तो क्यों न इसे दर्ज किया जाये। जब भी हम कोई शब्द पढ़ते हैं तो उसका एकचित्र मन में उभरता है और जब भी हम कोई चित्र देख रहे होते हैं तब उसे मनके किसी गहरे कोने में शब्द से समझ रहे होते हैं। एक चित्र शब्द तक ले जाता है और एक शब्द चित्र में उभरता है। हर व्यक्ति का देखना विशिष्ट है, किन्तु हर व्यक्ति उसे अभिव्यक्त नहीं कर पाता। अपने इस देखने के प्रति वो इसीलिए इतना जागरूक भी नहीं होता। लेखक चूँकि अपने माध्यम का खिलाड़ी होता है और उसमें यह क्षमता दूसरों से अधिक होती है कि वो अपने देखे को व्यक्तकर सके। यह देखना इतना विशिष्ट है कि उसका सामान्यीकरण किया ही नहीं जा सकता। हर व्यक्ति के पास देखा हुआ रहस्य हमेशा रहस्य की तरह इसलिए भी मौजूद रहता है कि उसे किसी दूसरे माध्यम में कह पाना लगभग असम्भव हो जाता है। फिर भी हम इस कोशिश में रहते ही हैं कि देखा हुआ सच लिखे हुए सच में बदल जाये। यह कितने प्रतिशत हो पाता है यह कहना मुश्किल है, किन्तु यह लिखा हुआ सच अक्सर देखे हुए सच से ज़्यादा आकर्षक, ज़्यादा सम्प्रेषणीय हो जाता है। इस देखी हुई दुनिया के लिखित उद्घाटन पर इतना ज़रूर हुआ कि जो रहस्य किसी एक के देखने का था, वो अनेकों के देखने का कारण बना।

– प्रस्तावना से

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Pages

Publishing Year

2017

Pulisher

Language

Hindi

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