Dharamvir Haqikat Rai

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Dharamvir Haqikat Rai

Dharamvir Haqikat Rai

55.00 50.00

In stock

55.00 50.00

Author: Gurudutt

Availability: 4 in stock

Pages: 63

Year: 2021

Binding: Paperback

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

धर्मवीर हकीकतराय

क्या आज का ‘‘नपुंसक’’ हिन्दू नाबालिग हकीकत की निर्मम हत्या से कुछ पाठ सीखेगा ? आज का हिन्दू नपुंसकता की पराकाष्ठा पर पहुँच चुका है किंतु उसको ‘क्लैब्यं मा स्म गमः’ कहकर उसके अस्तित्व और अस्मिता को जागृत करनेवाले ब्राह्मणों तथा दायित्वों को भी आज साँप सूँघ गया है।

कौन है इसका दोषी ? कौन है इसका अपराधी ? और कौन इस दोष और अपराध का निराकरण करने वाला ?

सुप्रसिद्ध लेखक श्री गुरुदत्त की विचारोत्तेजक तथा प्रेरणा देने वाली रचना।

अद्वितीय, अनुपम बलिदानी वीर

हकीकत राय का बलिदान जहाँ एक ओर हिन्दुओं और हिन्दुत्व की हकीकत का वर्णन करता है वहीं वह मुसलमान एवं इस्लाम की हकीकत को भी अनावृत्त करता है।

प्रस्तुत पुस्तिका में हकीकत राय के तेरह वर्षीय युग में भारत की सामाजिक पृष्ठभूमि, हिन्दुओं की दुर्दशा और इस्लाम का थोथापन, मुल्ला-मौलवियों की अन्ध साम्प्रदायिकता, इस्लामी न्याय की हास्यास्पद-प्रक्रिया ही नहीं अपितु पैगम्बर की संकीर्णता, पक्षपात एवं नैतिकता तथा चारित्रिक पतन का संक्षिप्त विवेचन हमारे विद्वान् एवं चिन्तक तथा हिन्दुत्व के प्रखर और प्रबल प्रहरी मनीषि श्री गुरुदत्त जी ने वर्णन किया है।

हिन्दुत्व और इस्लाम की यह विवेचना गागर में सागर रूप है। हमारी सुपुष्ट धारणा है कि मात्र इस लघु पुस्तिका को पढ़ लेने पर ही पाठक के सम्मुख इस्लाम की क्रूरता, उसका मजहबी थोथापन, न्याय के नाम पर अन्याय की पराकाष्ठा, कुरान का खोखलापन और सुनी-सुनाई गप्पों को गूँथ कर ‘हदीस’ बनाए गए कागजों के अपवित्र पृष्ठों को पवित्रता और अकाट्यता का परिधान पहनाकर इस्लाम के अत्याचार, अनाचार, अन्याय और अन्धत्व की क्रूर कथा स्पष्ट हो जाएगी।

वही शरा, वही हदीस आज इस्लाम द्वारा हिन्दुस्थान पर हिंसा और साम्प्रदायिकता का ताण्डव करने पर उतारू है। क्या आज का नपुंसक हिन्दू नाबालिग हकीकत की निर्मम हत्या से कुछ पाठ सीखेगा ? आज का हिन्दू नपुंसकता की पराकाष्ठा पर पहुँच चुका है किंतु उसको ‘क्लैब्यं मास्म गमः’ कहकर उसके अस्तित्व और अस्मिता को जागृत करनेवाले ब्राह्मणों तथा दायित्वों को भी आज साँप सूँघ गया है।

कौन है इसका दोषी ? कौन है इसका अपराधी ? और कौन इस दोष और अपराध का निराकरण करनेवाला ?

इन सभी प्रश्नों का एक उत्तर ही है-हम और केवल हम। हमें परमुखा-पेक्षिता को छोड़कर आत्मबल को पहचानना होगा। समय और स्थितियाँ बार-बार चुनौती और चेतावनी दे रही हैं-जागो और कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ो। काल (समय) की गति को कोई नहीं रोक सकता, केवल उसके साथ सहअस्तित्व वीर भावना वाले उसकी गति का सामना कर सकते हैं और नपुंसक समुदाय काल प्रवाह में प्रवाहित होकर अपना अस्तित्व, अस्मिता, और पहचान खो बैठते हैं।

काल का पुनरागमन कभी नहीं होता, तदपि इतिहास की पुनरावृत्ति होती देखी गई है। ‘गतं न शोचन्ति’ का वाक्य चिरनिद्रा में सोने का सन्देश नहीं देता अपितु कहता है-जो बीत गया सो बीत गया किन्तु अब तो जागो ! अपनी वीरता के इतिहास को दोहराओ ! हमारे पूर्वज, हमारे इतिहास पुरुष, हमारे रण बाँकुरे, हमारे हकीकत जैसे धर्मध्वजी, प्रताप जैसे प्रणवीर, शिवा जैसे शौर्यशाली, छत्रसाल जैसे क्षत्रप, गोविन्दसिंह जैसे गुरु, बन्दा वैरागी जैसे वीरों की गाथाएं आपके कानों में बार-बार डाली जा रही हैं। चिरनिद्रा त्यागों और हकीकत (बलिदानी वीर और वास्तविकता दोनों) की हत्या का प्रातिकार करने तथा अपना अस्मिता की स्थापना एवं अपने अस्तित्व का अहसास जताने के लिए मोहनिद्रा त्यागकर कटिबद्ध हो जाओ। इसी मन्त्र का उच्चारण करने के उद्देश्य से इस पुस्तिका का प्रकाशन किया जा रहा है।

– अशोक कौशिक

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2021

Pulisher

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