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धर्म और जेंडर
जेंडरगत मानसिकता से ग्रस्त नागरिकों के निर्माण और पुनर्निर्माण में धर्म की भूमिका से संबंधित अध्ययन की ज़रूरत सिर्फ यह मान लेने के चलते ही नहीं है कि धर्म रोज़मर्रा के हमारे जीवन के संरचनात्मक ढाँचे में रची-बसी एक प्रभावशाली संस्था है, बल्कि अब यह ज़रूरत इसलिए और ज़्यादा है क्योंकि वर्तमान राजनीतिक संदर्भ में हमारी अस्मिताओं को लामबंद करने या मज़बूत बनाने में भी यह प्रभावी भूमिका निभा रहा है। यह संचयन दो भागों में विभाजित है। पहले भाग के अंतर्गत दस आलेखों का संकलन है जो भारत, पाकिस्तान और चीन से संबंधित हैं। इन आलेखों को तीन विषयवस्तुओं के तहत बाँटा गया है। पहली विषयवस्तु में शामिल तीन आलेख जाति और धर्म के बीच अंतर्संवाद और उसके जेंडरगत परिणामों के बारे में सैद्धांतिक चर्चा करते हैं। दूसरी विषयवस्तु में वे आलेख समाहित हैं जो भिन्न-भिन्न तरीकों से जेंडर का निर्माण करनेवाले सांस्थानिक मानकों और नियमों की श्रेष्ठता के आत्मसातीकरण की चर्चा करते हैं। तीसरी श्रेणी में उन लेखों को शामिल किया गया है जो सीधे तौर पर महिलाओं के आंदोलन से संबंधित हैं या जहाँ धर्म के साथ नारीवादी संबद्धता है।
इस अंतर्संबंध की अभिव्यक्ति अस्मिता-विमर्श, कट्टरपंथी सामूहिकता या धार्मिक-राजनीतिक आंदोलनों के रूप में होती है। संचयन के दूसरे भाग में धार्मिक दृष्टि से महिलाओं के आचरण-संबंधी मानकों को निर्देशित करनेवाली हिंदी और उर्दू की एक-एक प्रचलित पुस्तक (‘बहिश्ती जेवर’ और ‘नारी शिक्षा’) के चुनिंदा हिस्सों को शामिल किया गया है। ये उपदेशात्मक पुस्तकें हिंदू और मुस्लिम महिलाओं के आचरण और व्यवहार से जुड़ी जेंडरगत परम्पराओं को मज़बूत करती हैं। आशा है, पाठकों के सहयोग से यह शुरुआत एक सफल अंजाम तक पहुँचेगी।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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