- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
ढूँढ़ा और पाया
‘ढूँढ़ा और पाया’ कवि विपिन कुमार अग्रवाल का खास ढंग से विशिष्ट काव्य-संग्रह है। इसमें की कुछ कविताएँ विपिन के एकदम पहले, या कि पहले आधे संग्रह ‘धुएँ की लकीरें’ (1956) से ली गयी हैं-इस संग्रह के दूसरे कवि लक्ष्मीकान्त वर्मा हैं। यह संयोग से कुछ अधिक है कि नयी कविता कि ये दोनों कवि असाधारण अपना पहला संग्रह संयुक्त प्रकाशित करते हैं। फिर प्रस्तुत संग्रह में कुछ अब तक की असंकलित कविताएँ सम्मिलित की गयी हैं। और विशिष्टता तब पूरी हो जाती है जब हम पाते है कि कवि की पाँच अन्तिम अप्रकाशित कविताएँ यहाँ पढ़ने को पहली बार सुलभ हो रही हैं। यों, यह संग्रह विपिन के काव्य समग्र का बड़ी कुशलता के साथ प्रतिनिधित्व करता है।
इसका संकलन सम्पादन डॉ. शीला अग्रवाल द्वारा किया गया है। विपिन की इन कविताओं को इस रूप में पढ़ते समय एक विषादपूर्ण सन्तोष का अनुभव होता है। कविताएँ हमारे सामने हैं, कवि अनुपस्थित। पर क्या इन कविताओं में ही हम कवि को उपस्थित नहीं पाते ? निराला का स्मरण अनायास हो आता है – मैं अलक्षित हूँ, यही कवि कह गया है।
– रामस्वरूप चतुर्वेदी
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 1991 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.