Do Sakhiyan

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Do Sakhiyan

Do Sakhiyan

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150.00 128.00

Author: Shivani

Availability: 5 in stock

Pages: 124

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788183611091

Language: Hindi

Publisher: Radhakrishna Prakashan

Description

दो सखियाँ

अनुक्रम

  • उपप्रेती
  • दो सखियाँ
  • चाँचरी
  • पाथेय
  • बन्द घड़ी

उपप्रेती

साइबेरिया के सीमांत पर बसे, चारों ओर सघन वन-अरण्य से घिरे, उस अज्ञात शहर में अपने किसी देशबंधु को ऐसे अचानक देखूगी, यह मैंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। वह भी ऐसे व्यक्ति को, जिसके मृत्युभोज में चालीस वर्ष पूर्व बड़ी अनिच्छा से ही सम्मिलित होना पड़ा था। पति के पीपल पानी की प्रेतमुक्ति से मुरझाई रमा, दोनों घुटनों में सिर छिपाए स्तब्ध बैठी थी। उसकी आँखों का अश्रुउत्स ही शायद सूख गया था। एक बार भी उसने मेरी ओर आँख उठाकर नहीं देखा। सब सोच रहे थे, शायद मुझे देख उसकी अस्वाभाविक स्तब्धता रुदन की सहस्र धाराओं में फूट उठेगी-इसीलिए मुझे बुलाया गया था। जब से उस मनहूस दुर्घटना की खबर मिली है, लड़की एकदम बत बनी बैठी है, न चीखी, न सिर पटका, न रोयी-बस, फटी-फटी आँखों से न जाने क्या देख रही है। उसके नाना यह कह मुझे स्वयं साथ ले गए, “तू चल बेटी, तू ही तो उसके बचपन की एकमात्र सहेली है। शायद तुझे देख दिल का गुबार निकाल ले।”

पर उसने मेरी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा।

“रमा!” मैंने भर्राए कंठ से उसे पुकारा और उसका हाथ थाम लिया।

“जो होना था सो हो गया बेटी, यही तो मैं इससे कह रही हूँ-जोर-जोर से रो-रोकर दिल का गुबार निकाल डाल!” उसकी विमाता बोलती चली जा रही थी, “किसने सोचा था मुझ अभागिन को यह दुर्दिन भी देखना पड़ेगा!” फिर वह आँखों पर आँचल धर सशब्द रोने लगी। उसकी विमाता का वह नाटकीय विलाप सुन मेरी हाड़मज्जा भस्म हो उठी थी। मैं जानती थी कि उसने मातृहीना निरीह रमा पर कैसे-कैसे अत्याचार किए थे। हाईस्कूल में प्रथम आने पर भी उसकी पढ़ाई रुकवा दी गई थी, दोनों वक्त का खाना बनाना, झाड़-बुहारी, ढेर-के-ढेर कपड़े धोना। महीनों से आ रहे उसके महीन ज्वर की भी किसी को चिंता नहीं थी। जितनी बार मैं उसे देखती वह मुझे पहले से और दुबली लगती। और फिर उसकी वह नित्य लगी रहनेवाली रहस्यमय खाँसी। और उन दिनों कुमाऊँ का कौन-सा घर ऐसा था जहाँ इसी खाँसी के बहाने क्षय का तक्षक घर की बहू-बेटियों की छाती पर चोर की भाँति सरकता, कुंडली मारकर नहीं बैठ जाता था!

एक दिन मैंने ही साहस कर उसकी कैंजा (विमाता) से कहा था, “कैंजा, रमा का एक्सरे करवा दीजिए न एक बार। आप कहें तो मैं डॉ. खजान से बात करूँ, वे मेरे जीजा के मित्र हैं, फिर इसकी माँ को भी तो…”

“बाप रे बाप!” भड़क उठी थीं कैंजा, “क्या कहा, एक बार और तो कह! हाँ-हाँ, मुझे पता है क्या था उसकी माँ को। साल में छह महीने तो सैनेटोरियम में रहती थी। इसका एक्सरे कराऊँ, ऐसी मूर्ख नहीं हूँ मैं। कहीं माँ की बीमारी निकल आई तो कोई घास भी नहीं डालेगा इसे। वैसे ही या इसके विवाह में कम अड़चनें लग रही हैं!”

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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