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दूसरा कृष्ण
अवतारों का उद्देश्य अन्याय, अनाचार मिटाना है। सामाजिक न्याय की स्थापना है। अवतार कभी-कभी होते हैं। शास्त्र सनातन हैं। कृष्ण अवतार थे। व्याव अवतार हैं। दोनों ही यमुना के किनारे पैदा हुए थे। यमुना, कृष्ण, व्यास तीनों ही कृष्ण हैं। कृष्ण पर सर्वोत्तम लिखने तथा कृष्ण भक्ति के कारण व्यास भी कृष्ण हैं। दूसरा कृष्ण दोनों का संबंध महाभारत से है। एक कृष्ण महाभारत युद्ध कथा के नायक हैं। दूसरा कृष्ण उस कथा के सर्जक। प्रथम कृष्ण की लीला की सीमा है। गोकुल; मथुरा, द्वारका। दूसरा कृष्ण स्थान की अपेक्षा शास्त्र से व्यापक है। व्याव की रचनाएँ समस्त भारत रचना, संगीत, शास्त्र, सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था का आधार हैं। जहाँ भी जिस रूप में भारत है, सर्वत्र व्यास हैं—दूसरा कृष्ण।
व्यास ने नियोग द्वारा कुरुवंश को स्थायी करना चाहा था। किन्तु वह हो न सका। कौरव आपसी युद्ध में नष्ट हो गए। शांतिपूर्व में विशाल, सामाजिक नियमों की स्थापना की। एक दिन अपने ही पुत्र से पराजित थे व्यास। ढेरों-ढेरों शास्त्र नहीं। भगवान का भजन आवश्यक है। महाभारत व्यास के युद्ध और नाश की कथा है। भागवत में व्यास उसी कृष्ण के हाथों में वंशी थमाकर भक्ति की स्थापना करते हैं। वैदिक वाड्मय से लेकर भागवत तक व्यास ने शास्त्र और समाज की लम्बी यात्रा की है। नाना प्रकार के देश, समाज, विचार, दर्शन, काव्य, कथा हैं व्यास के साहित्य में।
मंत्र और कथा महासमर एवं महारस, स्त्री के प्रति घोर वैराग्य तथा हजारों पत्नियों वाले के अनेक काव्य पुराण लिखे हैं व्यास ने। वेद, वेदांत भी व्यास के। पुराण, उप-पुराण एवं अनेक टीकाएँ, व्याख्याएँ भी व्यास की। तुलसीदास कहते हैं—राम न सकहिं नामे गुन भाई। ऐसे व्यास ने कितना लिखा, क्या-क्या लिखा ? उस अनंत, सगुण साकार की गणना व्यास से भी संभव होगा, इसमें संदेह है। उसी महान् लेखक ईश्वर प्रतिनिधि, कृष्ण के द्वितीय स्वरूप व्यास की कथा है ‘दूसरा कृष्ण’।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2020 |
Pulisher |
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