- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
दुनिया के बाजार में
दुनिया एक बाज़ार है, जहाँ वस्तु से लेकर विचार और व्यक्ति तक सब बिकता है। कोई अपनी मुंह माँगी कीमत पर बिकता है और कोई ख़रीदार की क़ीमत पर। बाज़ार उसका है जो ख़रीद सकता है या बेच सकता है। जो ख़रीद या बेच नहीं सकता, बाज़ार उसके लिए नहीं है। धर्म और पूँजी से चमचमाते दुनिया के इस बाज़ार में खड़ा वह व्यक्ति भौचक, लाचार और निराश है जिसकी आँखों में सपने हैं लेकिन जेब ख़ाली है। जिसके पास न मौद्रिक धन है और न धर्म की पूँजी है। इस बाज़ार में समानता और प्रेम, सिद्धांत और भावनाएँ बेमानी है। धार्मिक आस्था और अंधविश्वास, वर्ण और जातिगत श्रेष्ठता का दर्प और दंभ तथा आर्थिक सम्पन्नता की ठसक से अटे इस बाज़ार में मनुष्य और मनुष्यता का कोई मूल्य नहीं है। सुविख्यात कवि जयप्रकाश कर्दम की सूक्ष्म दृष्टि इस सत्य को पहचानती है, साथ ही मनुष्य के दर्द और द्वंद्व को भी अच्छी तरह समझती है। ‘दुनिया के बाज़ार में’ की कविताएँ कवि की इसी सूक्ष्म एवं चेतन दृष्टि की उद्भति हैं। मानव मन की कोमल संवेदनाओं से लेकर दलित, शोषित व्यक्ति की पीड़ा और संघर्ष की सार्थक अभिव्यक्ति इस संग्रह की कविताओं में देखी जा सकती है।
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.