Ek Aur Mrityunjay

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Ek Aur Mrityunjay

Ek Aur Mrityunjay

195.00 148.00

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195.00 148.00

Author: Mithileshwar

Availability: 5 in stock

Pages: 211

Year: 2016

Binding: Paperback

ISBN: 9788180318078

Publisher: Lokbharti Prakashan

Description

एक और मृत्युञ्जय

मिथिलेश्वर की ये लम्बी कहानियाँ शोषण, अन्याय, अत्याचार, अन्ध-विश्वास और सर्वग्रासी भ्रष्टाचार के प्रति संवेदनशील रचनाकार मन की तीखी प्रतिक्रियाएँ हैं, जिनके माध्यम से वह इन सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध एक प्रतिकूल वातावरण तैयार करने की चेतना जाग्रत करते हैं। इस तरह उनकी कहानियाँ कथा-सूत्रों एवं चरित्रों के माध्यम से सभ्यता की समीक्षा भी हैं। मिथिलेश्वर अपनी इन लम्बी कहानियों में हमारे समय की ज्वलन्त समस्याओं को उनके अन्तर्विरोधों के साथ मारक रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिससे ये कहानियाँ अनियन्त्रित, अमर्यादित, अपसंस्कृति को बेनकाब करती हुई वर्गीय चेतना को प्रामाणिक रूप में व्यक्त करती हैं। लोगों की बद्धमूल धारणाएँ, मानसिक पिछड़ापन, बदलते सामाजिक-आर्थिक सम्बन्ध, पारिवारिक ढाँचे में बदलाव, धर्म, संस्कृति एवं अर्थसत्ता का अन्तर्सम्बन्ध, असहिष्णुता, संवेदनहीनता और संकीर्णता में अनपेक्षित वृद्धि, सत्ता की संस्कृति एवं लोकतन्त्र की पतनशीलता के परिणाम-जैसे पक्ष इन लम्बी कहानियों की संरचनाओं में समाहित है।

इन कहानियों को पढ़ते हुए कुछ समाजशास्त्रीय अवधारणाएँ भी स्पष्ट होती हैं। असहाय एवं उपेक्षित लोगों के प्रति संवेदनशील दृष्टि और उनके अस्तित्व को स्थापित करने का प्रयास इन लम्बी कहानियों को सार्थक एवं सफल बनाते हैं। इन कहानियों में जीवन का राग है तथा तपती और खुरदरी जमीन पर नंगे पाँव चलने का एहसास है। इस रूप में ये कहानियाँ पाठकों के अन्दर आलोचनात्मक विवेक जागृत करने में सक्षम एवं सफल हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि मिथिलेश्वर की ये लम्बी कहानियाँ असाधारण महत्त्व की कहानियाँ हैं, जो न सिर्फ पठनीय है, बल्कि संग्रहणीय एवं उल्लेखनीय भी हैं।

अनुक्रम
भोर होने से पहले 9
गाँव का मधेसर 54
जमुनी 80
एक और मृत्युञ्जय 114
नदी की राह मैं 139
हरिहर काका 170
नरेश बहू 190

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Authors

Binding

Paperback

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Pages

Publishing Year

2016

Pulisher

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