Ek Aur Vibhajan

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Ek Aur Vibhajan

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Author: Mahashweta Devi

Availability: 5 in stock

Pages: 96

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9789352291250

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

एक और विभाजन

यहाँ अपनी भी बात कहना जरूरी हो आया है। सन् 1946 के 16 अगस्त का दिन उन दिनों में, उस जमाने के धर दक्षिण कलकत्ते में रहती थी। उन दिनों दक्षिण कलकत्ता, लेक की सीमा तक आकर खत्म हो जाता था। हिन्द महल्ले में रहती थी। वह किसी के विवाह की तारीख थी। विवाह के घर में मुस्लिम शहनाई वाले। रौशनचौकी बनाकर, शहनाई बजाने आये थे। लेकिन, सब लौट नहीं सके, सब कल भी नहीं हुए। उनमें से। बहतेरों को शरण भी मिली थी। वे लोग बच गये। हालाँकि उत्तेजना महा भयंकर थी। मैंने दक्षिण कलकत्ता को खन में नहाते देखा है। साथ ही इन्सानों को बचाने के लिए, इन्सानों को प्रबल साहस के साथ सड़क पर उतरते हए भी देखा है।

सन् 1964 में, मैं गड़िया में थी। उस वक्त का तजुर्बा भी भयावह था। उन्होंने सपना देखा। उस सपने को सबमें बिखेर देने का काम, उन्होंने नियमनिष्ठ सिपाही की तरह किया। इसके अलावा भी कितना कुछ किया है, उस बारे में, मैं भला कितना-सा जानती हूँ। हाँ, जितना कुछ मुझे याद है, उन छोटी-छोटी बातों की ही बात करू। मुझे याद है, विजयादशमी की सुबह, वे हमारे यहाँ मिठाई लेकर आ पहुँचते थे। वे मेरे बाबू जी को किस निगाह से देखते थे, वह मैं कैसे बताऊँ ? माँ के निधन के बाद, हम जब बहरामपुर गये थे। अपने सहारे की लाठी, खाजिम अहमद को साथ लेकर, वे हमारे यहाँ आ पहुँचे। दक्षिणी बरामदे में उजाला बिखेरते हुए, वे बैठ गये और उन्हें घेरकर हम सब वह तस्वीर देखते रहते थे, देखते रह जाते थे। ऐसी शिशुवत् हंसी, ऐसी स्नेह-मधुर बातें जाते-जाते उन्होंने हमें दिलासा दिया – मैं हूँ न! जब मन करे, तुम लोग यहाँ चले आना। सच्ची, वे जहाँ बैठे होते थे, उजाला कर देते थे। उनके चरणों में बैठते ही, मन में भरोसा बँधता था। ऐसे सभी इन्सान तो, एक-एक करके, मेरी जिन्दगी से विदा लेते जा रहे हैं।

बाबू जी ने लिखा था – ‘एक विशाल पेड़, जिसकी फनगी आकाश छुती है। करीम साहब ऐसे ही पेड़ थे। बड़े-बड़े महीरुह के दिन तो अब रहे नहीं विज्ञान कहता है। आज बरगद या साल का पेड़ लगाओ, तो सौ साल में बड़ा तो हो जायेगा, मगर पहले के पेड़ों की तरह महीरुह, अब नहीं होगा। जो मिट्टी, बाताश, जल वगैरह पेड़ को महीरुह बनाती थी, वह सब अब नहीं रही। करीम साहब जैसे बड़ी माप के इन्सानों की भी अब पुनरावृत्ति नहीं होगी।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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