Ek Koi Tha Kahin Nahin Sa

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Ek Koi Tha Kahin Nahin Sa

Ek Koi Tha Kahin Nahin Sa

375.00 285.00

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375.00 285.00

Author: Meera Kant

Availability: 5 in stock

Pages: 231

Year: 2009

Binding: Hardbound

ISBN: 9789350001370

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

एक कोई था कही नहीं सा

‘एक कोई था/कहीं नहीं-सा’ कश्मीर के गुजरे हुए जिन्दा इतिहास की फुटलाइट में आगे बढ़ने वाला एक ऐसा उपन्यास है जिसमें वहाँ के सामाजिक-सांस्कृतिक रेशों से बेटी रस्सी के माध्यम से एक पूरा युग रिफ्लेक्ट होता गया है। बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक तक खुली इस रस्सी को मीरा कांत ने शबरी नामक एक संघर्षशील किशोरी विधवा, उसके प्रगतिशील भाई अम्बरनाथ के जीवन-संघर्ष और क्रांतिकारी समाज सुधारक कश्यप बंधु की सामाजिक चेतना की लौ के सहारे बटते हुए दोबारा इक्कीसवीं शताब्दी तक गूँथा है। इस बुनावट में एक और अहम अक्स उभर कर आया है-कश्मीर में जाग रही नारी चेतना का।

साहित्य, समाजशास्त्र व राजनीति की व्यावर्त्तक रेखा को धूमिल करता यह उपन्यास कोई राजनीतिक दस्तावेज नहीं बल्कि राजनीति के निर्मम हथौड़ों के निरन्तर वार से विकृत किया गया कश्मीर की संस्कृति का चेहरा है। इसके नैन-नक्श बताते हैं कि कैसे कोई जीवन्त संस्कृति सियासी शह और मात की बाजी के शिकंजे में आकर एक मजबूर मोहरा बनकर रह जाती है। कश्मीरियत को वहीं के मुहावरों, कहावतों और किंवदन्तियों में अत्यन्त आत्मीयता से पिरोकर लेखिका ने आंचलिक साहित्य में एक संगेमील जोड़ा है।

यह उपन्यास मानव संबंधों की एक उलझी पहेली है। एक ओर यहाँ अपने ही देश में लोग डायस्पोरा का जीवन जी रहे हैं तो दूसरी ओर आतंकवाद के साये में घाटी में रह रहे लोग अचानक गुम हुए अपने बेटे-बेटियों को तलाश रहे हैं। कुल मिलाकर कश्मीरियों का वजूद आज इसी पुरानी उलटवांसी में बदलकर रह गया है – एक कोई था/कहीं नहीं-सा !

अनुक्रम

  • सोशल रिफार्म जिन्दाबाद
  • बर्फ का घर
  • चौथा चिनार

Additional information

Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2009

Pulisher

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