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Description
ऐलान गली जिन्दा है
कहा गया है कि अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो वह कश्मीर ही है और ऐलान गली जिन्दा है उपन्यास इसी स्वर्ग पर हाशिये पर दरिद्रता, अज्ञान, और जीवन-संघर्षो को अन्तरंग विवरणों के साथ उजागर करता है। जहाँ आज धर्म, जाति भाषा के नाम पर आदमी-आदमी के बीच दीवारें खड़ी की जा रही हों, वहाँ ऐलान गली के अनवर मियाँ, दयाराम मास्टर, संसारचन्द्र आदि लोग हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक बनकर उभरते हैं। दूसरी ओर बेरोजगारी के अंधकार में पल रही युवा पीढ़ी है, जो रोजगार का तलाश में बड़े शहरों की दौड़ रही है। अवतार ऐसी ही युवा पीढ़ी का प्रतिनिधि चरित्र है, जिसे अजीविका के लिए मुम्बई जैसे महानगर में जाना पड़ता है। महानगरीय सुविधाओं और चकाचौंध के बीच वह खुद को अजनबी और अस्तित्वहीन महसूस करता है, उसके जेहन में ऐलान गली प्यार के समुद्र की तरह पछाड़े मारती है।
ऐलान गली के निवासियों के आपसी सम्बन्धों के विविध आयामों को इस उपन्यास में इतने विस्तार और सूक्ष्मता से चित्रित किया गया है कि एक समूचे समाज का रूप उभरकर सामने आता है। वस्तुतः अपने तमाम पिछड़ेपन के बावजूद ऐलान गली वहाँ के प्रवासियों और निवासियों के दिल-दिमाग में उसी तरह जिन्दा है, जिस तरह फूलों में सुगन्ध।
कुन्दन मूर्ख न था। न ही घुन्ना था। वह माता-पिता की आकांक्षाओं के संसार में पराए व्यक्ति की तरह, अटपटा महसूस करता था। वह उसका संसार नहीं था। वह अपनी ही दुनिया में वितरण करता था पिता की महात्वकांक्षाओं ने अकारण ही उसमें हीन भावना भर दी थी। गली के इतिहास और दर्शन से उसे जन्मजात चिढ़ थी। सुबह से शाम तक दूसरो की खुशियों और अपनी परेशानियों के अन्तहीन सिलसिले में व्यक्त और त्रस्त लोगो को हाथ, आह, छिः थू और कानाफूसियों से कभी तो फुरसत मिलती। अलाँ ने क्या किया, फलाँ ने क्या खाया? रत्नी के घर आज कौन घुसा, संसारचन्द्र पुरोहित के घर में पूड़ी प्रसाद का नाश्ता कितने दिन चला? अर्जुननाथ की तिजोरी में कितनी पीढ़ियों का अल्लम-गल्लम पैसा जमा है? रूपा पर माँ का रंग चढ़ रहा है या नहीं ? यहाँ तक की विचारे मौलवी की दिल की भी खोज-खबर जारी रहती, क्या पता कब किस हसीना पर दिल लुटा बैठे। बीमारों की दवा-दारू करते-करते खुद ही मरीज न बन जाए। कलाम ऐसे, और ऊपर से तुर्रा यह कि नयी पौध बिगढ़ रही है, उसका भविष्य केवल ये बुजुर्ग लोग सँवार सकते हैं।
‘बहिश्त की उन अँधेरी गलियों को जिनकी कीचड़ में गाहे-ब-गाहे कमल के फूल खिलते हैं।’
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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