- Description
- Additional information
- Reviews (0)
Description
गाथा कुरुक्षेत्र की
भारतीय जातीय-स्मृति की गौरवमयी ध्वनि का नाम है महाभारत-गीता। इसी सच को आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में सुना जा सकता है। आचार्य द्विवेदी जी ने ‘महाभारत’ को उज्ज्वल चरित्रों का वन घोषित करते हुए लिखा है- ‘महाभारत’ को उज्ज्वल चरित्रों का वन कहा जा सकता है। वह कवि-रूपी माली का यत्नपूर्णक सँवारा उद्यान नहीं है जिसके प्रत्येक लता पुष्प-वृक्ष अपने सौंदर्य के लिए बाहरी सहायता की अपेक्षा रखते हैं, बल्कि यह अपने आप की जीवनी-शक्ति से परिपूर्ण वनस्पतियों और लताओं का अयत्न परिवर्तित विशाल वन है जो अपनी उपमा आप ही है। मूल कथानक में जितने भी चरित्र हैं वे अपने आप में पूर्ण हैं।
भीष्म जैसा तेजस्वी और ज्ञानी, कर्ण जैसा गंभीर और वदान्य, द्रोण जैसा योद्धा, कुंती और द्रौपदी जैसी तेजीदप्त नारियाँ, गांधारी जैसी पतिपरायण, श्रीकृष्ण जैसा उपस्थित बुद्धि और गंभीर तत्वदश, युधिष्ठिर जैसा सत्यपरायण, भीम जैसा मस्तमौला, अर्जुन जैसा वीर, विदुर जैसा नीतिज्ञ चरित्र अंयत्र दुर्लभ है।’ मश्जो ने भी ‘गाथा कुरुक्षेत्र की’ में महाभारत के इन सभी चरित्रों को उनकी संपूर्ण उज्ज्वलता से प्रस्तुत कर दिया है। चरित्रों के इस ‘पाठ’ या टैक्स्ट में अनेक अर्थों की अंतर्ध्वनियाँ हैं और उनका अंतर्ध्वनित सत्य है अन्याय के विरोध में अर्जुन की तरह गांडीव उठाना, अन्यायी को ध्वस्त करना।
– कृष्णदत्त पालीवाल
Additional information
Authors | |
---|---|
Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2010 |
Pulisher |
Reviews
There are no reviews yet.