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घर की बात
प्रकाशकीय
आजीवन साहित्य साधना में लीन रहने वाले गुरूदत्त का नाम अजर व अमर है; जिन्होंने अपने उत्कृष्ट साहित्य से अपना व भारत भूमि का नाम विदेशों में आलौकिक किया और भारत के यश व गौरव में वृद्धि की।
इनका जन्म लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) में सन् 1894 को हुआ था। तब लाहौर भारत का ही एक अंग था। ये आधुनिक विज्ञान के छात्र थे और पेशे से वैद्य थे। रसायन विज्ञान से एम.एस-सी. (स्नातकोत्तर) किया; किन्तु वैदिक साहित्य के व्याख्याता बने और साहित्य सृजन व साहित्य साधना में लग गये।
साहित्य साधना का सफर इन्होंने ‘स्वाधीनता के पथ पर’ नामक उपन्यास से किया और इस उपन्यास के प्रकाशन ने इन्हें लाखों-करोड़ों पाठकों के हृदय का सम्राट बना दिया और ये यश व प्रसिद्धि की सीढ़ियाँ चढ़ते चले गये। इसके बाद श्री गुरूदत्त ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति, समाज व इतिहास आदि पर अपनी कलम चलाते हुए एक के बाद एक, एक से बढ़कर एक लगभग 200 उपन्यासों का सृजन किया।
इसी प्रकार आजीवन साहित्य साधना में रत रहते हुए 8 अप्रैल 1989 को इन्होंने दिल्ली में अपना शरीर त्याग दिया और अपना सारा साहित्य भारत भूमि को समर्पित कर दिया।
अब ‘रजत प्रकाशन’ मेरठ से श्री गुरूदत्त के उपन्यासों का प्रकाशन करते हुए हमें अपार गौरव का अनुभव हो रहा है। साथ ही हिन्दी भाषी पाठकों के लिए तो यह हर्ष का विषय है कि श्री गुरूदत्त का साहित्य अब उन्हें सुलभ प्राप्त हुआ करेगा।
‘घर की बात’ श्री गुरूदत्त का सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित एक लोकप्रिय उपन्यास है। जो भाषा शैली, कथानक, शब्द संयोजन, मनोरंजन, ज्ञान वह प्रस्तुतिकरण प्रत्येक दृष्टिकोण से उत्कृष्ट है।
शहरी संस्कृति से प्रभावित होकर, भटके हुए युवा वर्ग को भारतीय संस्कृति द्वारा मार्गदर्शन पर आधारित इस उपन्यास की कथावस्तु अत्यंत ही शिक्षाप्रद है। श्री गुरूदत्त के इस उपन्यास में आज के भटके हुए युवा वर्ग के लिए संदेश है कि अपने नैतिक मूल्यों व प्राचीन संस्कृति की अवहेलना घातक है और इसका परिणाम केवल और केवल पतन ही है।
वास्तव में यह उपन्यास आज के भटके हुए युवा वर्ग के लिये संजीवनी बूटी की तरह है, जो उन्हें चरित्र हननता व नैतिक मूल्यों की गिरावट से बचाता है।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि गुरूदत्त जी की कलम से निकला यह सारगर्भित, उद्देश्यपूर्ण, मनोरंजक व रोचक उपन्यास सभी वर्ग के पाठको को पसन्द आयेगा और वे गुरूदत्त के प्रशंसकों की सूची में शामिल हो जायेंगे। एक पत्र द्वारा अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत करायें।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2016 |
Pulisher |
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