Gorakhnath Aur Unka Yug
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गोरखनाथ और उनका युग
जो हो, योगी घरबारी और गृहस्थ भी होते हैं। जो योगी कान नहीं फड़वाते वे औघड़ कहलाते हैं। योगियों की एक विशेष वेशभूषा है जिसका आगे वर्णन किया गया है। ब्रिग्स और हजारीप्रसाद ने इसपर सविस्तार लिखा है। पं. सुधाकर द्विवेदी ने जायसी की पद्मावत का सम्पादन करते समय योगी वेश का वर्णन किया है और प्रत्येक योगी वेश की विशेषता का उल्लेख किया है। निःसन्देह यह सज्जा एक अत्यन्त रोचक और आकर्षक रूप है। अब भी कनफटे योगी देश के भिन्न–भिन्न भागों में फैले हुए हैं। अनेक जातियों पर उनका प्रभाव है। उनके अनेक स्थानों पर मठ हैं। यह सब पुस्तक में वर्णित है। नाथ सम्प्रदाय को सिद्ध मत, सिद्ध मार्गय योग मार्ग, अवधूत मत, अवधूत सम्प्रदाय आदि के नाम से भी पुकारा जाता था।
नाथ शब्द में ‘ना’ का अर्थ है अनादि रूप और ‘थ’ का अर्थ है (भुवनत्रय को) स्थापित करना ‘ना. सं.’। नाथ सम्प्रदाय के कनफटों को दर्शनी साधु भी कहा जाता है। दर्शनियों में जो बिलकुल नंगे रहते हैं वे मद्य और मांस पीते और खाते हैं। कान की मुद्रा से ही उन्हें यह नाम दिया गया है। यह मुद्रा धातु या हाथी दाँत की होती है। सोना भी काम में आता है। मुद्राधारी ‘कुण्डल’ और ‘दर्शन’ दो नाम से ज्ञात है। दर्शन का सम्मान अधिक है। कुण्डल को पावित्री भी कहते हैं।
– ‘भूमिका’ से
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2023 |
Pulisher |
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