

Gulmohar ke Guchchhe

Gulmohar ke Guchchhe
₹250.00 ₹200.00
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Author: Manjul Bhagat
Pages: 102
Year: 2022
Binding: Paperback
ISBN: 9789355185464
Language: Hindi
Publisher: Bhartiya Jnanpith
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Description
Description
गुलमोहर के गुच्छे
मिसेज़ वर्मा पाँच बजते ही दफ्तर से निकल पड़ीं। दरवाज़ा खोलते ही झुलसा देने वाली लू का ज़बरदस्त थपेड़ा उनके मुँह पर पड़ा। उन्होंने काले चश्मे को ज़रा-सा नाक पर से सरकाकर सामने चिलचिलाती धूप का मुआयना किया, और उनके मुख से अनायास ही ‘उफ़ !’ के साथ एक लम्बी आह निकल गयी। फिर वही, तपते, सूरज की गरम सलाखों-सी किरणें, बदन पर दाग़ देतीं-सी। बस के अन्दर की उमस, घुटन-भरी ठेल-पेल, पसीने, की सड़ाँध, कुचले पाँव, कामुक घृणित स्पर्श, उतरते समय चढ़ने वालों का रेला। फिर ? फिर, घर ! छोटा-सा आँगन, तार पर फैले उजले-धुले कपड़े।
हाथ का टिफिन-बॉक्स और पर्स पटककर, सबसे पहले वे उन्हीं को समेटने में लग जायेंगी। कपड़े तहाकर रखते ही उनमें से एक तौलिया छाँट कर कन्धे पर डाल वाश-बेसिन की ओर चल देंगी। आँखों में रड़कते रोहों पर पन्द्रह-बीस बार पानी के ठण्डे छींटें मारेंगी, फिर हाथ-मुँह धोकर, गीले टपकते मुख को पोंछ डालने के पूर्व ही, मिनी फ्रिज’ की बदौलत प्राप्त ठण्डे पानी का गिलास गटागट पी जायेंगी। सवेरे का बँधा जूड़ा भी धीरे-से खोल देंगी। तब जाकर ज़रा-सा संयत हो पायेंगी। अपनी बिखरी हुई हालत को समेटते-न समेटते वर्मा जी की चिर-परिचित पदचाप सुनाई पड़ जायेगी। उनके पति रोज़ की भाँति आज भी सपाट, भावहीन, श्रान्त-क्लान्त चेहरा लिये घर के अन्दर दाखिल होंगे, बेसब्री से आँगन में दो कुरसियाँ घसीटते-घसीटते ही वे चाय की फ़रमाइश करेंगे। तब, मिसेज़ वर्मा ‘नीलिमा’ बन जायेंगी।
बिस्कुटों की कुरकुराहट और चाय की चुस्कियों के साथ, दोनों फिर, कुछ देर सुस्ता लेंगे। इधर-उधर की मतलब-बेमतलब गुफ़्तगू भी होती रहेगी।
‘‘चलती हो नीलिमा, ज़रा मार्केट तक ? सिगरेट लानी है।’’
‘‘हाँ चलो। ड्राई-क्लीनर को कपड़े भी देने हैं, डबल रोटी-मक्खन भी लेते आयेंगे।’’
नीलिमा बालों की ढीली-सी चोटी गूँथते-गूँथते खड़ी हो जायेगी।
मार्केट में टहलते, खरीदते, परखते, चाट की दुकान पर जुटी औरतों की साड़ियाँ निरखते, पानी के बताशे खाने को उसका मन भी मचल पड़ेगा। तब उसके पति भी आलू-पापड़ी का पत्ता लगवाकर खड़े हो जायेंगे। शाम का कुछ हिस्सा यूँ ही गुज़र जायेगा। घर जाकर कुछ पकाना भी तो है, नीलिमा चाट के चटखारे से चिपटी हुई ज़बान को मुँह के अन्दर फिराती हुई सोचेगी।
पकाने-खाने की व्यस्तता के पश्चात्, राहत-भरा नर्म बिस्तर उनके क्लान्त शरीर को अपने सीने से लगा लेगा। कसमसाती रीढ़ की हड्डी बिस्तर की टेक पर चैन पा जायेगी। पुरसुकूँ, रेशमी अँधेरा उनके माथे की दुखती रगों पर अपने नर्म होंठ रख देगा, जैसे कोई माँ दुलार से चूमकर अपने खीजे बच्चे को शान्त कर ले।
‘‘नीलू !’’ धीरे से उसका गाल सहलाते उसके पति का आग्रह-भरा स्पर्श, साधिकार उसे अपने समीप खींच लेगा। क्षणभंगुर आवेश। घनिष्ठ सामीप्य की सुखद ऊष्मा। आश्वासन देता-सा दुलार, कुछ खोजते-से उष्ण स्पर्श, आनन्द की उठती लहर। और फिर दोनों अपने-अपने बिस्तर पर अलग-अलग द्वीप बन जायेंगे।
तब ‘नीलू’ भी केवल ‘मैं’ रह जायेगी। वह सोचेगी यह ‘मैं’ हूँ। मिसेज़ वर्मा और नीलिमा से भी अधिक महत्त्वपूर्ण केवल ‘मैं’, अनाम किन्तु फिर भी ‘मैं’। न जाने कब, माथे पर से मिटी हर शिकन नींद की मिठास में डूब जायेगी।
Additional information
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Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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