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Description
गुमनामी से परे
‘‘इन पर्चियों को मैं ताश के पत्तों की तरह फेंटूँ और उन्हें मेज़ पर फैला दूँ। दरअसल यही तो थी, फ़िलहाल मेरी ज़िन्दगी ? सो मेरी सारी हदें, इस वक्त, करीब इन बीस असंगत नाम और पतों तक ही सीमित थीं जिनके बीच मैं, महज एक कड़ी था ? और क्यों ये ही सारे नाम थे बजाय किन्हीं और नामों के ? क्या साम्यता थी, मुझमें और इन नामों और जगहों में ? मैं किसी ख़्वाब में था, जहाँ यह मालूम होता है कि जब खतरा सिर पर मँडराने लग जाय तब हम किसी भी पल जाग सकते हैं। अगर मैं यह तय कर लेता, मैं इस मेज़ को छोड़ कर उठ जाता, तब सब कुछ बर्बाद हो जाता, सब कुछ शून्य में विलीन हो जाता। जो बाकी रह जाता, वह होता सिर्फ़ टीन का एक बक्सा और कागज़ के कुछ टुकड़े, जिन पर घसीटे अक्षरों में, लोगों और जगहों के नाम लिखे हुए थे, जिनके किसी के लिए भी कोई मायने नहीं होते।’’
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher |
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