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Description
गुजरा हुआ जमाना
पचास सालों से रचनारत कथाकार कृष्ण बलदेव वैद अपने कलात्मक तेवर और प्रयोगधर्मी लेखन के लिए सुप्रसिद्ध हैं। वह लीक से हटकर लिखते हैं, इसीलिए उनकी हर कृति सुधि पाठकों और लेखकों के लिए एक नया अनुभव बन जाती है।
‘गुजरा हुआ ज़माना’ उनकी रचनाशीलता का एक विशेष आयाम है। 1957 में प्रकाशित उनका पहला उपन्यास उसका बचपन आज भी अपने शिल्प और शैली के आधार पर हिंदी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में गिना जाता है। उसमे श्री वैद ने एक अति संवेदनशील बच्चे के दृष्टिकोण से पश्चिमी पंजाब के एक निर्धन परिवार की कलह और पीड़ा का संयत और साफ़ चित्रण करके कथा साहित्य को एक नई गहराई दी थी, एक नया स्वर दिया था।
1981 में प्रकाशित ‘गुजरा हुआ ज़माना’ उसी उपन्यास की अगली कड़ी है। इसमें उसका बचपन का केन्द्रीय पत्र बीरू अपनी परिवार की सीमाओं से बाहर की दुनिया को भी देखता है, उससे उलझता है। इसमें अनेक घटनाओं, पत्रों और पीडाओं से एक प्यारे और पेचीदा कस्बे का सामूहिक चित्र तैयार किया गया है। इस चित्र को देखकर दहशत भी होती है और श्री वैद की निराली नजर के दर्शन भी इसमें देश विभाजन सम्बन्धी सांप्रदायिक पागलपन को उभरा भी गया है और लताड़ा भी। ‘गुजरा हुआ जमाना’ देश विभाजन को लेकर लिखे गए उपन्यासों में एक अलग और विशिष्ट स्थान पिछले दो दशकों से बनाए हुए है। इसका यह संस्करण, आशा है, उस स्थान को और स्थिरता प्रदान करेगा।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2019 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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